मध्य प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह अपने ऊपर दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। मामला भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए एक विवादास्पद बयान से जुड़ा है, जिसे लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सख्त आदेश जारी किया था। हाई कोर्ट के आदेश के बाद 14 मई की शाम को इंदौर जिले के मानपुर थाने में मंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई।
क्या है मामला?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सेना की प्रवक्ता की भूमिका निभा रही कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर विजय शाह ने सार्वजनिक मंच से एक बयान दिया था, जिसे सामाजिक और राजनीतिक हलकों में विवादित और आपत्तिजनक माना गया। उनका बयान सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में वायरल हुआ, जिसके बाद इसकी आलोचना बढ़ गई।
मंत्री विजय शाह के बयान पर हाई कोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने संज्ञान लिया। कोर्ट ने मंत्री की भाषा को “गटर स्तर” की बताते हुए इसे एक सैन्य अधिकारी के सम्मान के विरुद्ध माना और राज्य के डीजीपी को चार घंटे के भीतर मामला दर्ज करने का निर्देश दिया।
कौन-कौन सी धाराएं लगाई गईं?
पुलिस ने हाई कोर्ट के आदेश के पालन में विजय शाह के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है, जिनमें शामिल हैं:
धारा 152 – देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाली टिप्पणी।
धारा 196(1)(B) – समुदायों में शत्रुता फैलाने वाली बात करना।
धारा 197(1)(C) – धार्मिक, भाषाई या जातीय आधार पर किसी समुदाय के खिलाफ सौहार्द बिगाड़ने वाली टिप्पणी करना।
इन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर आपराधिक प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा विजय शाह ने?
मंत्री विजय शाह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि उनके खिलाफ की गई कार्रवाई अत्यधिक कठोर है। उन्होंने तर्क दिया कि उनका बयान तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और जानबूझकर राजनीतिक रूप से गलत तरीके से उछाला गया है।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने बयान के लिए सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग चुके हैं और उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना एफआईआर दर्ज किया जाना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
क्या है अगला कदम?
मंत्री के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की अपील की है। अगर कोर्ट उनकी याचिका स्वीकार करता है तो आने वाले दिनों में इस मामले पर सुनवाई हो सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को कैसे लेता है—क्या एफआईआर को निरस्त करता है या मामले की गंभीरता को देखते हुए आगे की जांच की अनुमति देता है।
राजनीति और कानून के बीच संतुलन
यह मामला राजनीति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संवैधानिक मर्यादा के टकराव का प्रतीक बन गया है। सेना से जुड़ी किसी महिला अधिकारी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी न केवल नैतिक दृष्टिकोण से गलत मानी जा रही है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संस्थाओं की गरिमा को भी प्रभावित कर सकती है।
जहां एक ओर कुछ लोग इस कार्रवाई को राजनीतिक द्वेष मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कर्नल सोफिया के पक्ष में खड़े लोग इसे एक सही और समयोचित कदम बता रहे हैं।
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