रेड्डी का मोदी पर हमला: राफेल और युद्ध नीति पर सवाल

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने 29 मई 2025 को हैदराबाद में ‘जय हिंद’ रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने राफेल विमानों की क्षति, युद्ध के अचानक समापन और चीन की सीमा पर बढ़ते तनाव पर केंद्र सरकार की आलोचना की। रेड्डी ने पीएम मोदी से स्पष्ट जवाब मांगा कि हालिया सैन्य संघर्ष में पाकिस्तान ने कितने राफेल विमान गिराए और युद्ध के निर्णयों में पारदर्शिता क्यों नहीं बरती गई।

रेड्डी ने कहा कि प्रधानमंत्री को 140 करोड़ भारतीयों के सामने यह स्पष्ट करना चाहिए कि राफेल विमानों को लेकर क्या स्थिति है, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सीधा मसला है। उन्होंने आरोप लगाया कि राफेल सौदे में भारी भ्रष्टाचार हुआ और करोड़ों रुपये मोदी के करीबी लोगों को दिए गए।

युद्ध नीति पर सवाल: सर्वदलीय बैठक कब?

रेड्डी ने सवाल उठाया कि युद्ध शुरू करने से पहले सर्वदलीय बैठक क्यों बुलाई गई लेकिन युद्ध समाप्त करने से पहले ऐसा क्यों नहीं किया गया। उनका मानना है कि यह नीतिगत कमजोरी का परिणाम है और इससे देश की छवि प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने में विफलता दिखाई।

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चीन पर भी निशाना

मुख्यमंत्री ने चीन की सीमा पर भारत की लगभग 4000 वर्ग किलोमीटर जमीन खोने का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार इस गंभीर स्थिति से निपटने में असफल रही है। रेड्डी ने 1967 और 1971 के समय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने पहले भी चुनौतियों का साहस से सामना किया है और आज भी उसी साहस की जरूरत है।

युद्ध का अचानक अंत और अमेरिकी हस्तक्षेप

रेड्डी ने चार दिन के युद्ध के अचानक समाप्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि स्पष्ट नहीं है कि किसने किसे धमकाया या घुटने टेके। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान का हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने भारत को धमकाकर युद्ध रोकवाया। रेड्डी ने मोदी के उस बयान का मज़ाक उड़ाया जिसमें उन्होंने युद्ध रोकने को 140 करोड़ भारतीयों के आत्मसम्मान की जीत बताया।

राजनीतिक एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा

रेड्डी ने कांग्रेस नेताओं मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एकजुट थे और युद्ध के दौरान केंद्र सरकार का समर्थन किया। इसके विपरीत, उन्होंने मोदी सरकार को आरोपित किया कि उसने राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की संवेदनशीलता को प्रभावित किया।

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