आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय और जातीय समीकरण एक महत्वपूर्ण चुनावी फैक्टर होंगे। हालांकि, पिछले कई चुनावों में पिछड़े वर्ग के वोट बैंक को साधना सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने की दिशा में निर्णायक माना गया है, इस बार एक और कारक—एंटी इनकंबेंसी यानी सत्ता में बैठे दल के खिलाफ नाराजगी—भारी प्रभाव डाल सकता है। खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार के लिए यह एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
एंटी इनकंबेंसी का सर्वेक्षण
‘आईओएन भारत’ द्वारा किए गए एक ताजा सर्वे में बिहार के 5340 अति पिछड़ी जातियों के वार्ड पार्षदों से सीधे संवाद किया गया। सेफोलॉजिस्ट रामबन्धु वत्स ने इस सर्वे के जरिए सरकार के खिलाफ बढ़ती नाराजगी को सामने लाया। बेरोजगारी, नौकरशाही की मनमानी, विकास कार्यों में लापरवाही, भूमि विवाद, रिश्वतखोरी, कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति, शराबबंदी जैसे मुद्दे एंटी इनकंबेंसी के प्रमुख कारण बताए गए हैं।
सरकार के खिलाफ नाराजगी
सर्वे के अनुसार लगभग 63% लोग सरकार के कामकाज से नाराज हैं, जबकि केवल 16% लोग संतुष्ट हैं। 21% लोगों ने ‘पता नहीं’ का विकल्प चुना है, जो दर्शाता है कि जनता में सरकार को लेकर असमंजस की स्थिति है। यह स्थिति आगामी चुनाव में एंटी इनकंबेंसी के रूप में निर्णायक साबित हो सकती है।
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नीतीश कुमार की लोकप्रियता पर प्रभाव
सर्वे में यह भी सामने आया कि 34% लोग अभी भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने मत का पसंदीदा चेहरा मानते हैं, वहीं 19% मतदाता ने उनसे दूर होने का संकेत दिया है। बाकी 47% मतदाता अभी भी अपने मत को लेकर अनिर्णीत हैं, जो उनकी लोकप्रियता में उतार-चढ़ाव का संकेत है।
एंटी इनकंबेंसी के कारण
सेफोलॉजिस्ट रामबन्धु वत्स ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य में गिरावट और जेडीयू की कमान उनके हाथ से निकलने के कारण भी एंटी इनकंबेंसी बढ़ी है। इसके अलावा जमीन विवाद, नकली दस्तावेज़ों का बनना, और जमीनी हिंसा ने सरकार के प्रति लोगों में आक्रोश भड़का दिया है।
जातीय समीकरण के साथ एंटी इनकंबेंसी
बिहार में जातीय समीकरण हमेशा से चुनावी जीत का महत्वपूर्ण आधार रहे हैं। लेकिन इस बार जातीय समीकरण के साथ-साथ एंटी इनकंबेंसी भी एक बड़ा फैक्टर है। पिछड़े वर्ग के वोट बैंक के बावजूद अगर एंटी इनकंबेंसी बढ़ी तो सत्ता की राह कठिन हो सकती है।
सर्वे का राजनीतिक महत्व
यह सर्वे ‘आईओएन भारत’ द्वारा छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भी किया गया था, जहां भ्रष्टाचार के कारण एंटी इनकंबेंसी के कारण सत्ता पक्ष को हार का सामना करना पड़ा था। बिहार में भी यदि यही ट्रेंड कायम रहा तो आने वाला विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
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