भारत में आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव की तस्वीर अब पूरी तरह से साफ हो चुकी है। एक तरफ एनडीए (NDA) ने सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार घोषित किया है, वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) ने बी सुदर्शन रेड्डी पर दांव लगाया है। हालांकि, आंकड़ों के हिसाब से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार राधाकृष्णन की जीत की संभावना काफी प्रबल मानी जा रही है।
लेकिन इस चुनावी मुकाबले से भी ज़्यादा चर्चा बीजेपी की रणनीति और उसमें देवेंद्र फडणवीस की भूमिका की हो रही है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने जिस तरह सीपी राधाकृष्णन के नाम का सुझाव दिया, वह अब भारतीय राजनीति में एक अहम कदम माना जा रहा है।
देवेंद्र फडणवीस का सुझाव बना मास्टरस्ट्रोक
सूत्रों के मुताबिक, उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार की तलाश के दौरान फडणवीस ने ही सबसे पहले सीपी राधाकृष्णन का नाम सुझाया था। यह प्रस्ताव बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह — के सामने रखा गया।
फडणवीस ने यह दलील दी कि राधाकृष्णन न केवल संघ के पुराने स्वयंसेवक हैं, बल्कि दक्षिण भारत से भी आते हैं। इससे न केवल संघ की सहमति आसानी से मिल जाएगी, बल्कि बीजेपी के मिशन साउथ को भी मज़बूती मिलेगी।
इसके साथ ही राधाकृष्णन वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भी हैं, इसलिए राज्य की राजनीति में भी विरोध करना कठिन होगा। विपक्षी पार्टियों, विशेषकर महाराष्ट्र और तमिलनाडु की क्षेत्रीय पार्टियों के लिए यह एक मुश्किल स्थिति बन गई है।
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मिशन साउथ और रणनीतिक दबाव
यदि सीपी राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति पद पर चुने जाते हैं, तो वे वेंकैया नायडू के बाद दक्षिण भारत से आने वाले बीजेपी के दूसरे उपराष्ट्रपति होंगे। इससे यह संकेत भी जाएगा कि बीजेपी दक्षिण भारत को अधिक प्रतिनिधित्व देना चाहती है।
बीजेपी ने इस कदम के ज़रिए DMK और अन्य दक्षिणी पार्टियों को भी धर्मसंकट में डाल दिया है। अगर वे विरोध करती हैं तो यह दक्षिण के खिलाफ कदम दिख सकता है, और समर्थन देती हैं तो विपक्ष में दरार आ सकती है।
इसी दबाव को संतुलित करने के लिए इंडिया अलायंस ने बी सुदर्शन रेड्डी, एक गैर-राजनीतिक और दक्षिण भारत से आने वाले व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है। लेकिन अब भी रणनीतिक तौर पर एनडीए की बढ़त मानी जा रही है।
फडणवीस का बढ़ता कद
लोकसभा चुनाव में हार के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में फडणवीस की रणनीति ने बीजेपी को बड़ी राहत दी। अब उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार चयन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका ने राष्ट्रीय स्तर पर उनका कद बढ़ा दिया है।
आरएसएस से अच्छे संबंध, मोदी-शाह की निकटता, और राजनीतिक समझदारी ने उन्हें पार्टी के भीतर एक स्ट्रैटजिक मास्टरमाइंड के तौर पर स्थापित कर दिया है।
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