इंडिया गेट पर उभरा गुस्सा: सांसों का संघर्ष
9 नवंबर 2025 को दिल्ली की सड़कों पर सिर्फ भीड़ नहीं उतरी, बल्कि सांसें उतरीं। मांएं, बच्चे, छात्र, बुजुर्ग—सभी इंडिया गेट पर खड़े होकर साफ हवा की मांग कर रहे थे। दिल्ली का AQI 600 के पार पहुंच चुका था, जो ‘गंभीर’ श्रेणी से कहीं आगे था। पंजाबी बाग में 425, बावना में 410, जहांगीरपुरी में 401—ये आंकड़े न सिर्फ जहर की कहानी बयां करते हैं, बल्कि एक राष्ट्रीय आपदा की चेतावनी देते हैं। प्रदर्शनकारी बैनर थामे नारे लगा रहे थे: ‘स्मॉग से आजादी!’, ‘सांस लेना है हक हमारा!’। पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन खंडारी ने कहा, “हमने मुख्यमंत्री से अपॉइंटमेंट मांगा, लेकिन इंकार मिला। बच्चे सांस नहीं ले पा रहे, स्कूल बंद हैं, अस्पताल भरे पड़े हैं।” यह प्रदर्शन न केवल हवा की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहा था, बल्कि सरकार की निष्क्रियता पर भी चोट कर रहा था।
शांतिपूर्ण आंदोलन पर पुलिस का डंडा: हिरासत का सिलसिला
प्रदर्शन शांतिपूर्ण था—कोई संपत्ति क्षति नहीं, कोई हिंसा नहीं। फिर भी, दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि इंडिया गेट ‘प्रदर्शन स्थल नहीं’ है। डीसीपी (नई दिल्ली) देवेश कुमार महला ने कहा, “कानून-व्यवस्था बनाए रखने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ लोगों को निवारक हिरासत में लिया गया। केवल जंतर-मंतर ही अनुमति प्राप्त प्रदर्शन स्थल है।” दर्जनों लोग, जिनमें बच्चे और महिलाएं शामिल थे, को जबरन पुलिस वाहनों में ठूंस लिया गया। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट कर तीखा प्रहार किया: “साफ हवा का अधिकार मौलिक है, शांतिपूर्ण प्रदर्शन संवैधानिक। फिर नागरिकों को अपराधी क्यों बनाया जा रहा?” केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, पीएम2.5 मुख्य प्रदूषक था, जो फेफड़ों को सीधा नुकसान पहुंचा रहा। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि सरकार मॉनिटरिंग स्टेशनों पर पानी छिड़ककर डेटा छिपा रही है। क्लाउड सीडिंग का प्रयास विफल रहा, फिर भी कोई स्थायी समाधान नहीं। यह दृश्य लोकतंत्र पर सवाल खड़ा करता है—विरोध की आवाज को ‘देशविरोधी’ कैसे ठहराया जा सकता है?
प्रदर्शन का संदेश: सबकी समस्या, सबकी जिम्मेदारी
इंडिया गेट पर सैकड़ों लोग इकट्ठा हुए, क्योंकि यहां की दृश्यता अधिक है। एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “ये हमारी नहीं, आपकी-हमारी सबकी दिक्कत है। किसान पराली जलाते हैं, वाहन धुआं उगलते हैं, उद्योग विष फैलाते हैं—लेकिन हल कहां?” एनसीआर में नोएडा का AQI 354, गाजियाबाद 345—पूरी दिल्ली घुट रही थी। मांएं बच्चों को नेबुलाइजर थामे लाईं, प्रिस्क्रिप्शन दिखाए—प्रदूषण का असर साफ। आप नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा, “ये पहली बार है जब बुद्धिजीवी सड़क पर उतरे हैं। विश्वास की कमी है।” प्रदर्शन के बाद कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के सड़क कुत्तों के पुनर्वास आदेश पर भी विरोध जता रहे थे, जो प्रदूषण से जुड़ी अन्य सामाजिक मुद्दों को उजागर करता है।
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राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: आरोप-प्रत्यारोप का दौर
विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला। कांग्रेस ने इसे ‘प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करो, प्रदूषकों को नहीं’ बताया। एएपी ने समर्थन जताया, जबकि भाजपा सरकार ने कदम बताए—स्कूल बंद, दफ्तरों के समय बदले। पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, “सरकार प्रदूषण रोकने के उपाय कर रही है।” लेकिन सीएक्यूएम ने स्टेज-3 प्रतिबंध न लगाने का फैसला लिया, क्योंकि AQI में ‘सुधार’ का दावा किया। राहुल गांधी ने कहा, “मोदी सरकार को करोड़ों भारतीयों की फिक्र नहीं, जो बच्चे और भविष्य दांव पर हैं।” एक्स पर #JusticeForCleanAir ट्रेंड कर रहा, जहां लोग सरकार से अपील कर रहे।
आगे की राह: आपदा से सबक, स्थायी हल की जरूरत
दिल्ली हर सर्दी में विषाक्त हवा से जूझती है—पराली जलाना, वाहन उत्सर्जन, ठंडी हवाओं का जाल। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 20 गुना अधिक प्रदूषण। प्रदर्शन ने सवाल उठाए: प्रदर्शन स्थल केवल जंतर-मंतर क्यों? क्या सरकार ने अन्य जगहें बनाईं? यह आंदोलन अलार्म है—हवा रोकना मत, आवाज दबाना मत। विशेषज्ञों का कहना है, स्थायी नीतियां जरूरी: इलेक्ट्रिक वाहन, पराली प्रबंधन, हरित ऊर्जा। टैक्स देने वाले नागरिकों का हक है साफ सांस। यदि प्रदर्शनकारी निर्दोष थे, तो हिरासत गलत। दिल्ली की यह ‘आखिरी सांस’ पूरे देश के लिए चेतावनी है। सरकार को सुनना होगा—वरना, दम घुटना जारी रहेगा। सबकी दुआ है, हवा साफ हो, लोकतंत्र सांस ले।

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