H-1B वीजा नियमों में क्रांतिकारी बदलाव
अमेरिका ने H-1B वीजा से जुड़े नियमों में एक ऐसा बदलाव किया है, जो लाखों भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों की जिंदगी पर गहरा असर डाल सकता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए घोषणा की कि अब H-1B वीजा की वार्षिक फीस 1,00,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) हो जाएगी। यह फीस न केवल नए आवेदनों पर, बल्कि पुराने वीजा के नवीनीकरण पर भी लागू होगी। नया नियम आज, 21 सितंबर 2025 से प्रभावी हो गया है और फिलहाल एक वर्ष तक चलेगा।
पहले H-1B वीजा प्राप्त करने का औसत खर्च मात्र 5 लाख रुपये था, लेकिन अब छह साल के वीजा पीरियड में कुल व्यय 5.28 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है – यानी पुरानी फीस से 50 गुना अधिक! यह बदलाव अमेरिकी इमिग्रेशन सिस्टम को और सख्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जो ट्रंप प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का हिस्सा लगता है।
H-1B वीजा: भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स का गेटवे
H-1B वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है, जो आईटी, टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य, आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में नौकरी करने की अनुमति देता है। हर साल अमेरिका मात्र 85,000 ऐसे वीजा जारी करता है, और इनका सबसे बड़ा लाभार्थी भारत ही रहा है। 2024 में अकेले 2,07,000 भारतीयों को H-1B वीजा मिला था।
भारतीय आईटी दिग्गज जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो हर साल हजारों इंजीनियरों को अमेरिका भेजते हैं। लेकिन अब इतनी भारी फीस के कारण कंपनियों के लिए यह प्रक्रिया आर्थिक बोझ बन सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय टैलेंट की आमद कम हो सकती है, और कंपनियां वैकल्पिक रणनीतियां अपनाने को मजबूर होंगी।
यह भी पढ़ें : RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा: वित्तीय समावेशन के लिए ग्राहक-बैंक साझेदारी जरूरी
ट्रंप का नया वीजा कार्ड सिस्टम: अमीरों के लिए खुला द्वार?
इस बदलाव के साथ ही ट्रंप प्रशासन ने तीन नए वीजा कार्ड लॉन्च किए हैं, जो अमीर निवेशकों को लक्षित करते हैं:
- ट्रंप गोल्ड कार्ड: कीमत 10 लाख डॉलर (करीब 8.8 करोड़ रुपये)। यह अनलिमिटेड रेसिडेंसी प्रदान करता है – आवेदक अमेरिका में स्थायी रूप से रह सकता है, वोटिंग और पासपोर्ट को छोड़कर सभी नागरिक सुविधाएं मिलेंगी।
- ट्रंप प्लेटिनम कार्ड: उच्च-स्तरीय सुविधाओं के साथ निवेश-आधारित रेसिडेंसी।
- कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड: कंपनियों के लिए विशेष प्रावधान।
ट्रंप ने कहा, “अब अमेरिका सिर्फ टैलेंटेड और योग्य लोगों को ही वीजा देगा। H-1B का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है। कंपनियां सस्ते विदेशी कर्मचारियों को लाकर अमेरिकियों की नौकरियां छीन रही हैं – अब ऐसा नहीं चलेगा।” कंपनियों को अब H-1B याचिका के साथ फीस जमा करने का प्रमाण देना अनिवार्य होगा, अन्यथा याचिका रद्द हो जाएगी।
भारतीय कंपनियों और प्रोफेशनल्स पर असर
माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और जेपी मॉर्गन जैसी वैश्विक कंपनियों ने अपने H-1B वीजा धारक भारतीय कर्मचारियों को सलाह दी है कि वे अमेरिका में ही रहें। कारण? विदेश यात्रा के बाद वापसी पर दोबारा 88 लाख रुपये की फीस चुकानी पड़ेगी। भारत से हर साल लाखों इंजीनियर, कोडर और टेक प्रोफेशनल्स अमेरिका का रुख करते हैं, लेकिन अब वे यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या मिडिल ईस्ट जैसे विकल्पों की ओर मुड़ सकते हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह कदम मानवीय रूप से प्रभावित करेगा – कई परिवार बिछड़ सकते हैं। हम अमेरिकी अधिकारियों से इसकी समीक्षा की उम्मीद करते हैं।” अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इससे भारतीय आईटी निर्यात पर 10-15% की मार पड़ सकती है।
भविष्य की चुनौतियां: टैलेंट बनाम धन
क्या अमेरिका अब प्रतिभा की बजाय धनवान लोगों को प्राथमिकता देगा? यह सवाल आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा। एक ओर जहां H-1B जैसे वीजा अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नवाचार से मजबूत बनाते हैं, वहीं नई फीस से मध्यम वर्ग के प्रोफेशनल्स बाहर हो सकते हैं। भारतीय युवाओं को अब वैश्विक अवसरों पर पुनर्विचार करना होगा। क्या यह बदलाव ‘ड्रीम जॉब’ को सपना ही बनाए रखेगा, या नई राहें खोलेगा? समय बताएगा।
संबंधित पोस्ट
ममता बनर्जी का विवादित बयान: दुर्गापुर रेप केस पर ‘लड़कियों को रात में बाहर नहीं जाना चाहिए’
उत्तर प्रदेश राजनीति में नए विवाद, अखिलेश यादव का योगी पर वार
चिदंबरम का विवादित बयान: ऑपरेशन ब्लू स्टार और राजनीतिक हलचल