October 15, 2025

चाबहार पोर्ट पर अमेरिका का झटका भारत का अरबों का निवेश और रणनीति खतरे में

अमेरिका ने भारत को एक और बड़ा झटका दिया है। यह झटका ईरान के चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट से जुड़ा है, जिसमें भारत ने अरबों रुपये का निवेश किया है। दरअसल, अमेरिका ने 2018 में भारत को दी गई वह विशेष छूट वापस ले ली है, जिसके तहत भारत को इस पोर्ट को विकसित करने और संचालन की अनुमति मिली थी। अब 29 सितंबर से अगर कोई कंपनी या व्यक्ति इस बंदरगाह से जुड़े ऑपरेशंस करेगा, तो उस पर अमेरिकी प्रतिबंध लग जाएंगे।

भारत के लिए रणनीतिक झटका

चाबहार पोर्ट भारत के लिए केवल एक व्यापारिक परियोजना नहीं थी, बल्कि यह एक रणनीतिक मास्टरप्लान का हिस्सा था। इस पोर्ट के जरिए भारत बिना पाकिस्तान पर निर्भर हुए सीधे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच सकता था। यह प्रोजेक्ट भारत की क्षेत्रीय कूटनीति और कारोबारी विस्तार दोनों के लिए बेहद अहम माना जाता था। अमेरिकी निर्णय से भारत का वर्षों की मेहनत और निवेश खतरे में पड़ गया है।

ट्रंप की ‘मैक्सिमम प्रेशर पॉलिसी’

अमेरिका ने अपने फैसले को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “मैक्सिमम प्रेशर पॉलिसी” का हिस्सा बताया है। इस नीति का मकसद ईरान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करना और उसके आर्थिक संसाधनों पर पूरी तरह दबाव बनाना है। अमेरिका ने पहले भी भारत पर 50% टैरिफ लगाकर आर्थिक चोट पहुंचाई थी, और अब चाबहार पोर्ट से जुड़ा यह कदम भारत के लिए और बड़ा झटका साबित हो सकता है।

भारत-अमेरिका रिश्तों पर असर

यह फैसला भारत-अमेरिका संबंधों पर भी सवाल खड़ा करता है। एक तरफ अमेरिका भारत को रणनीतिक साझेदार कहता है, वहीं दूसरी ओर ऐसे निर्णय लेकर भारत की दीर्घकालिक योजनाओं पर चोट करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन साधना होगा और अमेरिका पर अधिक निर्भरता से बचना होगा।

भारत के सामने विकल्प

अब सबसे बड़ा सवाल है कि भारत इस झटके का जवाब कैसे देगा। क्या भारत वैकल्पिक मार्ग तलाश करेगा, या फिर अमेरिका से छूट के लिए दोबारा बातचीत शुरू करेगा? कुछ जानकार मानते हैं कि भारत को रूस और ईरान जैसे देशों के साथ साझेदारी और मजबूत करनी चाहिए, ताकि अमेरिकी दबाव का असर कम हो। वहीं, कुछ का मानना है कि भारत को अपने आर्थिक और रणनीतिक फैसलों में आत्मनिर्भरता बढ़ानी होगी।

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