नई दिल्ली: एक ऐसा मुद्दा जिसे शायद हर घर ने कभी न कभी महसूस किया है — शिक्षा और इलाज की बढ़ती कीमतें। अब इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान सामने आया है, जो सरकार, समाज और हर आम नागरिक के लिए एक चेतावनी जैसा है।
मोहन भागवत का बड़ा बयान
एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने कहा आज शिक्षा और इलाज इतने महंगे हो गए हैं कि आम आदमी की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं। ये दोनों चीजें इंसान के जीवन के लिए जरूरी हैं और इन्हें सस्ता और सुलभ होना चाहिए। अगर शरीर ही स्वस्थ नहीं रहेगा तो पढ़ाई कैसे होगी? और पढ़ाई के लिए लोग आज घर-ज़मीन तक बेच देते हैं।”
क्या कहती हैं आज की ज़मीनी हकीकत?
- प्राइवेट स्कूलों की सालाना फीस: ₹50,000 से ₹1 लाख तक
- मेडिकल बिल: मामूली बीमारी में भी ₹10,000 से ₹20,000
- मेडिकल कॉलेज की फीस: लाखों से सीधे करोड़ों में
- सरकारी सीटें: बेहद सीमित
- आम आदमी: EMI और महंगाई में पिस रहा है
आज माता-पिता ये तय नहीं कर पा रहे कि बच्चे की स्कूल फीस भरें या महीने का राशन लाएं। घर का कोई बीमार हो जाए तो मन में सवाल उठता है इलाज कराएं या बिजली का बिल भरें?
शिक्षा और स्वास्थ्य: अधिकार या लक्ज़री?
मोहन भागवत का ये बयान कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि सामाजिक सच्चाई को उजागर करने की एक ईमानदार कोशिश है। जब देश का एक सबसे बड़ा सामाजिक संगठन कहता है कि बुनियादी ज़रूरतें भी आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं, तो हमें यह मानना पड़ेगा कि कुछ तो गड़बड़ है।
ज़िम्मेदारी किसकी?
- सरकार की?
- निजी संस्थाओं की?
- या हम सबकी भी?
मोहन भागवत का यह बयान सिर्फ एक विचार नहीं, एक सामूहिक जागरूकता की पुकार है। क्योंकि अगर शिक्षा और स्वास्थ्य का बोझ सिर्फ अमीरों की जेब झेल सकती है, तो देश का भविष्य कहां जाएगा?
अब समय है सोचने का…
- क्या हम ऐसा समाज बना रहे हैं जहाँ पढ़ाई और इलाज सिर्फ पैसे वालों की जागीर बन जाए?
- क्या सरकार को अब शिक्षा और स्वास्थ्य को व्यापार नहीं, सेवा समझना चाहिए?
- क्या हम सबको इस दिशा में कोई ठोस पहल करनी चाहिए?
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