पश्चिम बंगाल की राजनीति में इन दिनों एक दिलचस्प नारा गूंज रहा है — “बंगाल मांगे योगी!”
यह नारा न सिर्फ एक चुनावी स्लोगन है, बल्कि यह संकेत भी है कि बीजेपी अब बंगाल की राजनीति में एक नया चेहरा और नया तेवर लेकर उतरना चाहती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो अपने तेजतर्रार प्रशासनिक फैसलों और हिन्दुत्ववादी छवि के लिए जाने जाते हैं, अब बंगाल में भी एक बड़े चुनावी चेहरे के तौर पर देखे जा रहे हैं।
नारा क्यों बना सुर्ख़ी?
“बंगाल मांगे योगी” — ये नारा अचानक नहीं आया।
बीजेपी कार्यकर्ताओं और सोशल मीडिया पर समर्थकों ने लंबे समय से इसकी मांग उठाई है कि बंगाल में भी ऐसा नेतृत्व हो जो “कानून व्यवस्था को सुधार सके”, “राष्ट्रवादी एजेंडा लागू कर सके” और “कट्टर राजनीतिक विरोधियों से सख्ती से निपट सके”।
उनके लिए योगी आदित्यनाथ इस सोच का सबसे सशक्त चेहरा बनकर उभरे हैं।
योगी की छवि और बंगाल की ज़रूरतें
पश्चिम बंगाल की राजनीति लंबे समय से हिंसक झड़पों, पार्टी टकराव और प्रशासनिक विवादों से घिरी रही है। वहीं योगी आदित्यनाथ की छवि है —
- अपराधियों पर बुलडोज़र चलवाने वाले नेता,
- राम मंदिर निर्माण की दिशा में निर्णायक भूमिका निभाने वाले व्यक्ति,
- और यूपी में हिंदुत्व की राजनीति के सबसे मज़बूत स्तंभ।
बीजेपी समर्थकों का तर्क है कि जिस तरह योगी ने उत्तर प्रदेश में “लॉ एंड ऑर्डर” को संभाला है, उसी प्रकार की सख्ती बंगाल को भी चाहिए।
क्या बंगाल योगी जैसा नेतृत्व चाहता है?
यह सवाल केवल एक नारे तक सीमित नहीं है। बंगाल की जमीनी राजनीति बेहद जटिल है।
- तृणमूल कांग्रेस (TMC) की गहरी पकड़,
- ममता बनर्जी का जुझारू अंदाज़,
- और राज्य की सांस्कृतिक, भाषाई अस्मिता — ये सब मिलकर एक चुनौती पेश करते हैं।
योगी आदित्यनाथ को बंगाल के वोटर कितनी सहजता से स्वीकार करेंगे, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी, लेकिन बीजेपी की रणनीति साफ़ है —
ममता बनर्जी की छवि को योगी के मुक़ाबले में कठोर और अनुशासित नेतृत्व से टकराना।
यह भी पढ़ें: सी.वी. आनंद बोस ने मुर्शिदाबाद हिंसा के पीड़ितों से की मुलाकात
बीजेपी की पूर्वी रणनीति और योगी की भूमिका
बीजेपी के लिए बंगाल, बिहार, झारखंड और ओडिशा — ये चार राज्य अगले चुनावों में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश की जबरदस्त सफलता के बाद पार्टी अब योगी आदित्यनाथ को ‘हिंदुत्व के राष्ट्रीय चेहरे’ के तौर पर भी प्रोजेक्ट करने में जुटी है।
बंगाल में भी उनकी रैलियों को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है, खासकर उत्तर बंगाल, बर्धमान, और जंगलमहल क्षेत्र में।
2021 के विधानसभा चुनाव में योगी की कई रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी थी, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उनकी “law and order” वाली छवि वहां के युवाओं और मध्यम वर्ग को आकर्षित कर रही है।
विपक्ष का पलटवार: “बंगाल यूपी नहीं है”
ममता बनर्जी और TMC नेताओं ने इस नारे पर कड़ा पलटवार किया है।
TMC नेताओं का कहना है कि बंगाल की ज़मीन “हिंसा और कट्टरता” की नहीं, बल्कि “संस्कृति और सहिष्णुता” की है।
ममता खुद योगी पर कई बार निशाना साध चुकी हैं, कहती हैं:
“हम बंगाल को उत्तर प्रदेश नहीं बनने देंगे।”
यह बयान दर्शाता है कि ‘बंगाल मांगे योगी’ नारा जितना सशक्त है, उतना ही विवादास्पद भी है।
क्या नारा वोट में बदलेगा?
राजनीति में नारे सिर्फ माहौल बनाते हैं, लेकिन वोट तभी मिलते हैं जब ज़मीन पर संगठन, उम्मीदवार और रणनीति साथ चले।
बीजेपी की कोशिश है कि 2026 या उससे पहले होने वाले किसी भी चुनाव में योगी आदित्यनाथ को “स्टार कैम्पेनर” के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सिर्फ एक छवि के दम पर ममता के किले में सेंध लगाई जा सकती है?
“बंगाल मांगे योगी!” — यह नारा केवल एक मांग नहीं, बल्कि बीजेपी की बंगाल को लेकर दीर्घकालिक रणनीति की झलक है।
क्या योगी आदित्यनाथ ममता बनर्जी के लिए एक मजबूत चुनौती बन पाएंगे?
क्या बंगाल की जनता यूपी के मॉडल को अपनाने को तैयार है?
और सबसे बड़ा सवाल — क्या यह नारा अगले चुनाव में वोटों में बदल पाएगा?
इसका जवाब आने वाले समय में बंगाल की सड़कों और मतपेटियों में छुपा है।

संबंधित पोस्ट
Bihar Election में ऐतिहासिक जीत के बाद, PM Modi को NDA सांसदों ने बधाई दी
Priyanka Gandhi का संसद में पलटवार! कहा ‘बेरोज़गारी और गरीबी पर बात करे सरकार
CM Yogi ने जनता से की ये बड़ी अपील! जाने पूरी खबर