August 28, 2025
Bengaluru Stampede

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बेंगलुरु भगदड़ मामला: CAT का बड़ा फैसला — ‘पुलिस के पास अलादीन का चिराग नहीं होता!’

बेंगलुरु के प्रसिद्ध चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुई भीषण भगदड़, जिसमें 11 लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए, अब एक नए कानूनी मोड़ पर पहुंच गई है। इस मामले में निलंबित किए गए IPS अधिकारी को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Central Administrative Tribunal – CAT) ने बड़ी राहत दी है। ट्रिब्यूनल ने इस फैसले में साफ शब्दों में कहा, “पुलिस के पास कोई अलादीन का चिराग नहीं होता कि वो अचानक उमड़ने वाली भीड़ का पूर्वानुमान लगा सके।”

यह टिप्पणी पुलिस बल पर बार-बार होने वाली आलोचनाओं पर एक मजबूत जवाब के रूप में देखी जा रही है। आमतौर पर जब भीड़ या किसी आयोजन में अव्यवस्था होती है, तो सबसे पहले दोष पुलिस को दिया जाता है। लेकिन इस मामले में ट्रिब्यूनल ने ना सिर्फ पुलिस की सीमाओं को समझा, बल्कि आयोजकों की जिम्मेदारी भी स्पष्ट की।

हादसे की पृष्ठभूमि:

यह घटना तब हुई जब रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर फैन्स को अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए स्टेडियम के बाहर आमंत्रित किया। इस पोस्ट के चलते हजारों लोग अचानक स्टेडियम के बाहर जमा हो गए। चूंकि पुलिस को इसकी पूर्व सूचना नहीं थी, इसलिए भीड़ नियंत्रण के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की जा सकी।

भीड़ इतनी ज्यादा थी कि स्टेडियम के गेटों पर धक्का-मुक्की शुरू हो गई। देखते ही देखते भगदड़ मच गई और 11 लोगों की जान चली गई। कई अन्य लोग घायल हो गए। उस समय सवाल उठा कि पुलिस ने कोई पूर्व तैयारी क्यों नहीं की। इसी के बाद एक सीनियर IPS अधिकारी को निलंबित कर दिया गया।

CAT का तर्क:

CAT ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पुलिस को इस आयोजन के बारे में बहुत देर से जानकारी मिली थी। ऐसे में उन पर दोष मढ़ना तर्कसंगत नहीं है। ट्रिब्यूनल ने कहा, “सोशल मीडिया के इस युग में जब आयोजक बिना किसी प्लानिंग के हज़ारों लोगों को बुला लेते हैं, तब पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ पुलिस पर डालना अन्यायपूर्ण है।”

ट्रिब्यूनल ने RCB और आयोजकों की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में आयोजक की पहली जिम्मेदारी होती है कि वह प्रशासन को सूचना दे और उचित इंतजाम सुनिश्चित करे।

क्या यह भविष्य की घटनाओं को बदलेगा?

इस निर्णय के बाद अब यह उम्मीद की जा रही है कि पुलिस अधिकारियों को बलि का बकरा बनाना बंद होगा और आयोजकों को भी जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह केस आने वाले समय में एक मिसाल बन सकता है जहां सोशल मीडिया के ज़रिए की जा रही ‘अनियोजित भीड़’ की घटनाओं पर नई गाइडलाइन बन सकती है।

सामाजिक और कानूनी संदेश:

यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि कैसे सोशल मीडिया की ताकत, अगर सही से नहीं इस्तेमाल की जाए, तो वह एक गंभीर जनसुरक्षा संकट में बदल सकती है। आयोजकों को चाहिए कि वे प्रशासन से संपर्क करें, अनुमति लें और सुरक्षा को प्राथमिकता दें। वहीं, सरकार और ट्रैफिक कंट्रोल एजेंसियों को भी टेक्नोलॉजी के ज़रिए ऐसी भीड़ को समय रहते नियंत्रित करने की योजना बनानी चाहिए।

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