December 9, 2025

भीमा कोरेगांव मामला: वरवरा राव की जमानत शर्तों में बदलाव की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी और 85 वर्षीय कवि-सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। राव ने अपनी मेडिकल जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग की थी। उनकी याचिका में यह अनुरोध किया गया था कि उन्हें ग्रेटर मुंबई से बाहर जाने के लिए ट्रायल कोर्ट से अनुमति लेने की बाध्यता से राहत दी जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और याचिका वापस ले ली गई।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ?

यह मामला जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की खंडपीठ के सामने आया। वरवरा राव की ओर से सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने दलीलें पेश कीं।

  • ग्रोवर ने अदालत को बताया कि राव की तबीयत लगातार बिगड़ रही है और उनकी पत्नी हैदराबाद चली गई हैं, जिसके कारण अब उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
  • उन्होंने कहा कि राव की मासिक पेंशन 50,000 रुपये है, जबकि उनके इलाज पर हर महीने लगभग 76,000 रुपये खर्च होते हैं।
  • हैदराबाद में उन्हें मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन मुंबई में इलाज पर अधिक खर्च होता है।
  • इस आधार पर राव ने जमानत की शर्तों में संशोधन की गुहार लगाई थी।

हालांकि, जस्टिस माहेश्वरी ने नाराजगी जताते हुए कहा,
“सरकार उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखेगी, अन्यथा उसी अदालत में जाएं। हमें इसमें कोई रुचि नहीं है।”
इसके बाद अदालत ने राव की याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना और वापस लेने की अनुमति दे दी।

पृष्ठभूमि: कब और क्यों मिली थी वरवरा राव को मेडिकल जमानत?

अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया शामिल थे, ने वरवरा राव को मेडिकल आधार पर जमानत दी थी।

उस समय अदालत ने कहा था कि –

  • राव की उम्र,
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ,
  • और 2.5 साल की हिरासत की अवधि को देखते हुए जमानत जरूरी है।

लेकिन साथ ही यह भी शर्त लगाई गई थी कि वे ग्रेटर मुंबई क्षेत्र को बिना स्पेशल NIA कोर्ट की अनुमति के नहीं छोड़ सकते।

भीमा कोरेगांव मामला क्या है?

भीमा कोरेगांव हिंसा मामला 1 जनवरी 2018 से जुड़ा है। पुणे के पास भीमा कोरेगांव में दलित समुदाय द्वारा आयोजित ‘शौर्य दिवस’ कार्यक्रम में हिंसा भड़क गई थी। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए।

जांच एजेंसियों ने दावा किया कि यह हिंसा नक्सलियों के षड्यंत्र का हिस्सा थी। इसके बाद कई एक्टिविस्ट, वकील और बुद्धिजीवी इस केस में आरोपी बनाए गए।
वरवरा राव पर भी आरोप है कि उन्होंने माओवादी संगठनों से संबंध रखे और हिंसा को भड़काने में भूमिका निभाई। हालांकि, राव और उनके समर्थक इन आरोपों को हमेशा से नकारते रहे हैं।

वर्तमान स्थिति और अगला कदम

फिलहाल राव जमानत पर बाहर हैं लेकिन उनकी आवाजाही पर कड़ी शर्तें लागू हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि अगर राव को किसी प्रकार की नई राहत चाहिए तो उन्हें उसी अदालत (ट्रायल कोर्ट या NIA कोर्ट) का दरवाजा खटखटाना होगा।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में जल्दी ट्रायल पूरा होने की संभावना नहीं है क्योंकि अभी यह CrPC की धारा 207 के चरण में है। यानी मुकदमे की कार्यवाही अभी शुरुआती दौर में ही है।

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