माओवादियों का ऐतिहासिक बयान
भारत में नक्सलवाद के खिलाफ केंद्र सरकार की लंबे समय से चल रही मुहिम को एक बड़ी सफलता मिलने के संकेत दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले, भाकपा (माओवादी) ने अस्थायी युद्धविराम की घोषणा की है। यह बयान 15 अगस्त 2025 को जारी किया गया था, लेकिन अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण 16 सितंबर 2025 को सार्वजनिक हुआ। माओवादी प्रवक्ता अभय (मल्लुजोला वेणुगोपाल) ने छत्तीसगढ़ के स्थानीय पत्रकारों को जारी इस प्रेस नोट में कहा है कि संगठन ने बिना शर्त हथियार डालने का फैसला किया है। यह कदम प्रधानमंत्री, गृह मंत्री अमित शाह और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की अपीलों का जवाब माना जा रहा है। बयान में बदलते अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिदृश्य का जिक्र करते हुए मार्च 2026 तक नक्सलवाद समाप्त करने के सरकार के अभियान में सहयोग की उम्मीद जताई गई है।
युद्धविराम की शर्तें और देरी का कारण
माओवादियों ने एक महीने के युद्धविराम की मांग की है, जिसमें सरकार से सुरक्षा अभियानों को रोकने और बातचीत के लिए समय देने की अपील की गई है। बयान में कहा गया है कि यह अस्थायी विराम है, लेकिन संगठन सार्वजनिक मुद्दों पर राजनीतिक दलों और संगठनों के साथ चर्चा जारी रखेगा। प्रेस नोट में अभय की नवीनतम तस्वीर भी शामिल है। देरी के लिए फुटनोट में अप्रत्याशित परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है। बस्तर के जमीनी सूत्रों के अनुसार, अर्धसैनिक बलों के अग्रिम ठिकानों, लगातार गश्त और राज्य पुलिस व सीआरपीएफ के संयुक्त अभियानों के कारण माओवादी कैडरों की आवाजाही कठिन हो गई है। यह पहली बार है जब माओवादियों ने राष्ट्रीय स्तर पर औपचारिक युद्धविराम की घोषणा की है, जो उनके मृत जनरल सेक्रेटरी नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू की पहल का विस्तार माना जा रहा है, जिनकी मई 2025 में बस्तर में मुठभेड़ में मौत हुई थी।
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सरकार की सतर्क प्रतिक्रिया
केंद्र और राज्य सरकारों ने इस बयान पर सतर्कता बरती है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि प्रेस विज्ञप्ति की प्रामाणिकता की जांच की जा रही है। छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र में “युद्धविराम” शब्द अनुपयुक्त है, और बातचीत शर्तों पर नहीं हो सकती। उन्होंने माओवादियों से आत्मसमर्पण करने और पुनर्वास नीति का लाभ उठाने की सलाह दी। बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक पी. सुंदरराज ने स्पष्ट किया कि भाकपा (माओवादी) के साथ बातचीत या कोई निर्णय पूरी तरह सरकार के विवेक पर निर्भर है, जो स्थिति का आकलन करने के बाद लिया जाएगा। हाल ही में झारखंड के हजारीबाग में तीन माओवादियों के मारे जाने और छत्तीसगढ़ के गारीaband में एक केंद्रीय समिति सदस्य की मौत जैसे घटनाक्रमों के बाद यह बयान आया है, जो सुरक्षा बलों की सफलता को दर्शाता है।
नक्सलवाद समाप्ति की दिशा में कदम
गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने का वादा किया था, और यह बयान उसी दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। माओवादियों ने बयान में कहा है कि वे अब जन संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करेंगे और राजनीतिक पार्टियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे। संगठन ने फेसबुक और ईमेल के माध्यम से समर्थकों और कैद नेताओं से राय मांगने का भी जिक्र किया है। प्रारंभिक चर्चा वीडियो कॉल के जरिए हो सकती है। हालांकि, सरकार ने अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह विकास नक्सल प्रभावित क्षेत्रों जैसे बस्तर में शांति प्रक्रिया को गति दे सकता है।
भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां
यह घटनाक्रम नक्सलवाद के खिलाफ ऑपरेशन कागर जैसे अभियानों की सफलता को रेखांकित करता है। माओवादियों की यह पहल उनके नेतृत्व संकट और दबाव के कारण हो सकती है। यदि प्रामाणिक साबित हुई, तो यह शांति वार्ता का द्वार खोल सकती है, लेकिन सरकार की सतर्कता उचित है क्योंकि अतीत में ऐसे बयान रणनीतिक साबित हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आत्मसमर्पण और मुख्यधारा में शामिल होने से न केवल हिंसा रुकेगी, बल्कि आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों का विकास तेज होगा। यह बयान नक्सलवाद के अंत की शुरुआत हो सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय सरकार के हाथ में है।
शांति की उम्मीद
कुल मिलाकर, यह बयान केंद्र सरकार की नक्सल रोधी रणनीति की सफलता का प्रमाण है। यदि बातचीत आगे बढ़ी, तो यह लाखों लोगों के लिए नई उम्मीद जगाएगा। लेकिन जांच पूरी होने तक सतर्क रहना जरूरी है। यह घटना हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प और संवाद से हिंसक संघर्षों का समाधान संभव है।
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