कांग्रेस पार्टी के ‘वोट चोरी’ अभियान पर अब कानूनी घेरा कसता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में एक नागरिक द्वारा जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी के हालिया बयानों को लेकर कठघरे में खड़ा किया गया है।
क्या है मामला?
हाल ही में कांग्रेस ने एक अभियान चलाया, जिसका नाम था ‘वोट चोरी बंद करो’। इस कैंपेन में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर EVM (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) से छेड़छाड़ करने और जनता का वोट “चुराने” का आरोप लगाया। कांग्रेस के मुताबिक, चुनावी प्रक्रिया में धांधली हो रही है और इसके जरिए लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है। लेकिन अब यही अभियान सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा गया?
PIL में याचिकाकर्ता ने यह आरोप लगाया है कि यह अभियान देश की चुनावी व्यवस्था पर से जनता का विश्वास कमजोर करता है।कांग्रेस द्वारा किए गए ये दावे जनता को गुमराह करते हैं। यह एक भ्रामक प्रचार है, जिसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए चलाया गया।याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ कार्रवाई की जाए और इस तरह के कैंपेन पर प्रतिबंध लगाया जाए।
अब सवाल उठता है
क्या कांग्रेस का ये अभियान राजनीतिक बयानबाज़ी है, या वाकई कोई कानूनी सीमा लांघी गई है?क्या ऐसे आरोप लगाना लोकतंत्र को मजबूत करता है या उसकी नींव हिलाता है?और सबसे अहम क्या ये PIL लोकतांत्रिक प्रणाली की रक्षा के लिए एक जरूरी कदम है, या फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला?क्या आपको लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देना चाहिए?
या फिर यह सिर्फ राजनीति का हिस्सा है, जिसमें हर पार्टी अपना-अपना नैरेटिव चलाती है?
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