भारत की G-7 में भूमिका पर विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बयान पर कांग्रेस की कड़ी प्रतिक्रिया

भारत की वैश्विक राजनीतिक महत्वता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हाल ही में कनाडा में आयोजित 51वें G-7 समिट में भारत को ‘आउटरीच कंट्री’ के तौर पर आमंत्रित किया गया, जो देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। इस समिट के दौरान अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की भूमिका की तारीफ की और कहा कि “भारत जैसे देश G-7 में होने ही चाहिए क्योंकि यह असली वैश्विक शक्ति हैं।” यह बयान भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है और देश की कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करता है।

विदेश सचिव विक्रम मिस्री का बड़ा बयान

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि भारत को G-7 का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि अब ग्लोबल ऑर्डर बदल चुका है और भारत की जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, वैश्विक जिम्मेदारियों को देखते हुए उसे इस जैसे बड़े मंचों पर फुल मेंबरशिप मिलनी चाहिए। यह बयान भारत के बढ़ते वैश्विक दबदबे और कूटनीतिक महत्व को रेखांकित करता है।

विदेश सचिव का यह बयान मोदी सरकार की अंतरराष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें भारत को वैश्विक मंचों पर अपनी जगह और अधिकार सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है।

कांग्रेस का तीखा हमला और आलोचना

हालांकि, इस बयान पर कांग्रेस पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस प्रवक्ताओं ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार केवल बड़े अंतरराष्ट्रीय इवेंट्स में दिखावा करती है लेकिन असल कूटनीति में कोई ठोस कदम नहीं उठाती। कांग्रेस का कहना है कि भारत को पहले G-20 की अध्यक्षता का फायदा जमीन पर उतारना चाहिए, जिसके बाद ही G-7 में स्थायी सदस्यता की बात करना सार्थक होगा।

कांग्रेस ने मोदी सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि उनकी विदेश नीति केवल प्रचार तक सीमित है, जबकि देश के सामने कई गंभीर आर्थिक और सामाजिक मुद्दे हैं जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कांग्रेस का यह रुख इस बात का संकेत है कि वे मोदी सरकार की विदेश नीति की गंभीरता पर सवाल उठा रहे हैं।

भारत की वैश्विक महत्वता और आगे की राह

भारत का G-7 में बढ़ता प्रभाव नकारा नहीं जा सकता। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, विश्व में बढ़ता राजनीतिक दबदबा और बढ़ती जनसंख्या इसे वैश्विक मंचों पर स्थायी सदस्यता का मजबूत दावेदार बनाते हैं। वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है, खासकर जब बात इंडो-पैसिफिक रणनीति, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक विकास की हो।

लेकिन यह भी सच है कि स्थायी सदस्यता पाने के लिए भारत को अपने घरेलू मुद्दों के साथ-साथ कूटनीतिक संबंधों को भी और मजबूत करना होगा। G-7 की स्थायी सदस्यता सिर्फ एक सम्मान नहीं, बल्कि बड़ी जिम्मेदारी भी है, जिसमें वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा से जुड़ी गहरी समझ और प्रभावशाली भागीदारी शामिल है।

निष्कर्ष

विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बयान ने भारत की वैश्विक महत्वता को उजागर किया है और मोदी सरकार की विदेश नीति की दिशा को स्पष्ट किया है। वहीं, कांग्रेस की आलोचना बताती है कि देश के अंदर राजनीतिक स्तर पर इस मुद्दे पर मतभेद हैं।

अब देखना यह है कि भारत भविष्य में G-7 जैसे बड़े वैश्विक मंचों पर स्थायी सदस्यता हासिल कर पाता है या नहीं। यह भारत की कूटनीति, घरेलू नीति और वैश्विक भागीदारी पर निर्भर करेगा।

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