नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा के मानसून सत्र के पहले ही दिन एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। सरकार ने “दिल्ली स्कूल शिक्षा शुल्क निर्धारण एवं विनियमन में पारदर्शिता विधेयक 2025” पेश किया, जिसका मकसद स्कूल फीस में पारदर्शिता लाना बताया गया। लेकिन इस बिल को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) ने जमकर विरोध किया है और इसे “दिखावटी” और “निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाने वाला” करार दिया है।
सरकार का दावा फीस बढ़ोतरी में होगी पारदर्शिता
दिल्ली सरकार का कहना है कि इस बिल के जरिए निजी स्कूलों में फीस वृद्धि की प्रक्रिया को नियमबद्ध और पारदर्शी बनाया जाएगा। अभी तक कई अभिभावक स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने की शिकायतें करते रहे हैं। सरकार का दावा है कि नया विधेयक यह सुनिश्चित करेगा कि स्कूल फीस में किसी भी तरह की बढ़ोतरी को एक तय प्रक्रिया और मंजूरी के बाद ही लागू किया जा सके।
AAP का विरोध निजी स्कूलों को खुली छूट देने की तैयारी
विपक्ष की नेता आतिशी ने इस बिल पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा यह विधेयक पारदर्शिता के बारे में नहीं है। यह तो निजी स्कूलों को खुली छूट देने के लिए लाया गया है, ताकि वे मनमानी फीस वसूल सकें। AAP का आरोप है कि भाजपा सरकार ने यह बिल जानबूझकर अप्रैल से लटका रखा था, जिससे कि निजी स्कूल बिना किसी बाधा के फीस बढ़ा सकें। अब जब अभिभावकों को शिकायत करने का मौका नहीं बचा, तो इसे “पारदर्शिता” के नाम पर पेश कर दिया गया है।
विधानसभा के बाहर भी हुआ प्रदर्शन
AAP विधायकों ने इस बिल के खिलाफ विधानसभा परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने प्रदर्शन किया और मांग की कि इस विधेयक को जनहित में दोबारा समीक्षा के लिए भेजा जाए। विपक्ष ने सवाल उठाया कि जब अभिभावकों की जेब पहले से महंगाई से झुलस रही है, तब यह बिल किसके हित में लाया गया?
सबसे बड़ा सवाल असर किस पर पड़ेगा?
इस पूरे विवाद के बीच एक बड़ा सवाल उठता है । इस विधेयक से फायदा किसे होगा?क्या इससे अभिभावकों को राहत मिलेगी, जैसा कि सरकार दावा कर रही है?या फिर यह विधेयक निजी स्कूल प्रबंधन को फीस बढ़ाने का “कानूनी लाइसेंस” देगा?विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस विधेयक में निजी स्कूलों की जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की गई, तो यह बिल वास्तव में मुनाफाखोरी को बढ़ावा दे सकता है। इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे वे मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवार, जिनके बच्चे इन निजी स्कूलों में पढ़ते हैं।
क्या यह विधेयक सही दिशा में कदम है?
जहां सरकार इसे एक सुधारवादी कदम बता रही है, वहीं विपक्ष और कई शिक्षा विशेषज्ञ इसे शंकास्पद मान रहे हैं। पारदर्शिता लाने के नाम पर अगर स्कूलों को ज्यादा अधिकार और कम निगरानी दी जाती है, तो यह विधेयक सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगा।आवश्यकता इस बात की है कि किसी भी नीति या कानून को अभिभावकों, शिक्षकों और शिक्षा विशेषज्ञों से संवाद के बाद बनाया जाए, ताकि सभी हितधारकों को संतुलित रूप से लाभ मिले।
बिल पास हुआ तो क्या बदल जाएगा?
अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि क्या यह विधेयक विधानसभा में पास होगा और अगर हुआ, तो क्या इससे वास्तव में पारदर्शिता आएगी या फिर यह सिर्फ एक प्रशासनिक लिपाफेती बनकर रह जाएगा? अगर इस विधेयक का इस्तेमाल निजी स्कूलों को मनमानी करने की छूट देने के लिए किया गया, तो यह फैसला आने वाले समय में दिल्ली के लाखों अभिभावकों के लिए चिंता का कारण बन सकता है।

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