October 15, 2025

H-1B वीजा फीस हाइक: विपक्ष का मोदी सरकार पर तीखा हमला, ‘कमजोर पीएम’ बने निशाना!

अमेरिकी फैसले से भारतीय आईटी सेक्टर पर संकट

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीजा पर सालाना 1,00,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की फीस लगाने के ऐतिहासिक फैसले ने भारत में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। यह बदलाव 21 सितंबर 2025 से लागू हो गया है और न केवल नए आवेदनों, बल्कि रिन्यूअल पर भी लागू होगा। व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि यह फीस मौजूदा वीजा धारकों पर लागू नहीं होगी, लेकिन नए आवेदकों के लिए यह एक बड़ा झटका है।

H-1B वीजा आईटी, टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका का द्वार रहा है। 2024 में 85,000 वीजा में से 70% से अधिक (करीब 2 लाख) भारतीयों को मिले थे। लेकिन अब यह फीस पुरानी 5-6 लाख रुपये की तुलना में 50 गुना महंगी है, जो टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो जैसी कंपनियों के लिए कर्मचारियों को अमेरिका भेजना मुश्किल बना देगी। अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और जेपी मॉर्गन जैसी अमेरिकी कंपनियों ने अपने H-1B कर्मचारियों को विदेश यात्रा न करने की सलाह दी है। इससे भारतीय आईटी निर्यात पर 10-15% की मार पड़ सकती है, और लाखों युवाओं के सपने चूर हो सकते हैं।

ट्रंप ने इसे ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का हिस्सा बताते हुए कहा कि विदेशी श्रमिक अमेरिकी नौकरियों को छीन रहे हैं। लेकिन भारत में इसे विदेश नीति की नाकामी माना जा रहा है, खासकर जब ट्रंप ने हाल ही में मोदी को जन्मदिन की बधाई दी थी।

कांग्रेस का धारदार प्रहार: ‘कमजोर पीएम’ और ‘इवेंट मैनेजमेंट’ वाली विदेश नीति

विपक्ष ने मोदी सरकार पर सीधा हमला बोला है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर पोस्ट कर कहा, “गले मिलना, खोखले नारे लगवाना, कॉन्सर्ट कराना और ‘मोदी-मोदी’ चिल्लाना विदेश नीति नहीं है। यह राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने का मामला है।” उन्होंने इसे ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का जन्मदिन रिटर्न गिफ्ट करार दिया, जो भारतीय टेक वर्कर्स को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी 2017 की पुरानी पोस्ट शेयर कर दोहराया, “मैं दोहराता हूं, भारत का पीएम कमजोर है।” उन्होंने कहा कि मोदी ने ट्रंप से H-1B पर बात नहीं की, जो देशहित के खिलाफ है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने जोड़ा, “ट्रंप रोज अपमान कर रहा है, लेकिन पीएम चुप हैं। राहुल गांधी 2017 में ही चेतावनी दे चुके थे।” पार्टी का कहना है कि यह ‘रणनीतिक चुप्पी और शोरगुल वाली ऑप्टिक्स’ का नतीजा है, जो लंबे समय में भारत को नुकसान पहुंचाएगी।

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अन्य दलों का साथ: ‘बेबस पीएम’ से ‘पूर्ण अंधकार’ तक

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विदेश नीति को ‘पूरी तरह नाकाम’ बताया। उन्होंने कहा, “यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका भारत को नुकसान पहुंचा रहा। हम तेल, उर्वरक जैसे आयात पर निर्भर हो गए हैं। आर्थिक नीतियां फेल हो चुकी हैं।” यादव ने उत्तर प्रदेश में आईटी निवेश का हवाला देते हुए चेतावनी दी कि इससे नौकरियां और मार्जिन प्रभावित होंगे।

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक्स पर लिखा, “140 करोड़ लोगों के पीएम इतने बेबस क्यों हैं? प्रधानमंत्री जी, कुछ तो कीजिए!” उन्होंने मोदी से तत्काल कार्रवाई की मांग की, वरना युवाओं का भविष्य दांव पर लग जाएगा।

AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “अमेरिका भारत को रणनीतिक साझेदार नहीं मानता, यह मोदी सरकार की नाकामी है। हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे इवेंट्स से क्या हासिल हुआ? मैडिसन स्क्वायर गार्डन में एनआरआई इकट्ठा करने से क्या फायदा?” ओवैसी ने विदेश नीति को ‘प्रचार तक सीमित’ बताया और कहा कि आम भारतीय ही भुगतेंगे।

शिवसेना (यूबीटी) के नेता आदित्य ठाकरे ने केंद्र की ‘चौंकाने वाली चुप्पी’ पर सवाल उठाया। “जिनका भविष्य इससे जुड़ा है, उनके लिए यह पूर्ण अंधकार जैसा है। सरकार क्यों सो रही है?”

सरकार की चुप्पी और भविष्य की राह

विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया में कहा कि यह फैसला ‘मानवीय प्रभाव’ डालेगा और परिवारों पर असर पड़ेगा। हम अमेरिकी अधिकारियों से समाधान की उम्मीद करते हैं। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि सरकार की ‘रणनीतिक चुप्पी’ जारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारतीय टैलेंट कनाडा, यूरोप या ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख कर सकता है।

क्या मोदी सरकार अब अमेरिका से सख्त बातचीत करेगी, या यह विवाद संसद तक पहुंचेगा? आने वाले दिनों में केंद्र की प्रतिक्रिया तय करेगी कि यह मुद्दा कितना गहरा जाएगा। एक ओर जहां यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास है, वहीं भारत के लिए यह टैलेंट ब्रेन ड्रेन का खतरा बन गया है। राजनीतिक दलों की एकजुटता से दबाव बढ़ेगा, लेकिन समाधान कूटनीति में ही है।

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