भारत-चीन सीमा विवाद एलएसी पर फिर हुई अहम बातचीत, लेकिन क्या चीन पर भरोसा किया जा सकता है?

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच Line of Actual Control (LAC) को लेकर एक बार फिर अहम बातचीत हुई है। यह बातचीत बुधवार को नई दिल्ली में Working Mechanism for Consultation and Coordination (WMCC) के तहत आयोजित की गई। चीन ने इस बैठक को “खुली और स्पष्ट” (candid) बताया है, लेकिन इस बार भी कोई ठोस समाधान सामने नहीं आया।

WMCC बैठक समाधान की ओर या सिर्फ औपचारिकता?

WMCC वह मंच है । जहां दोनों देश सीमा विवाद को बातचीत से सुलझाने की कोशिश करते हैं। इस बैठक में दोनों पक्षों ने खासतौर पर पूर्वी लद्दाख की स्थिति पर गहन चर्चा की और 23वीं Special Representatives (SRs) Meeting में हुई सहमतियों को लागू करने पर विचार किया।बीजिंग ने अपने बयान में कहा कि बातचीत “सकारात्मक और व्यावहारिक माहौल” में हुई है। साथ ही, अब दोनों देश 24वीं SRs बैठक की तैयारी में जुट गए हैं।लेकिन सवाल यही है क्या यह बातचीत वास्तव में स्थिति को सुधार पाएगी, या फिर यह भी सिर्फ एक औपचारिक कवायद बनकर रह जाएगी?

भारत का रुख स्पष्ट Status Quo Ante चाहिए

भारत बार-बार यह स्पष्ट करता रहा है कि Status Quo Ante, यानी अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति को बहाल किया जाए। भारत यह नहीं चाहता कि चीन एक तरफ बातचीत करे और दूसरी ओर एलएसी पर आक्रामक गतिविधियों में जुटा रहे। सरकार का रुख साफ है । सीमा पर शांति और स्थिरता के बिना भारत-चीन संबंध सामान्य नहीं हो सकते। यही संदेश हर बार कूटनीतिक और सैन्य बातचीत में चीन को दिया गया है।

गलवान घाटी की झड़प बनी टर्निंग पॉइंट

जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के रिश्तों में भारी तनाव आ गया। इस झड़प में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस दिखाया, लेकिन दोनों ओर से जानें गईं। उसके बाद से अब तक कई दौर की सेना और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत हो चुकी है।लेकिन सच्चाई यह है कि पूरी तरह से डी-एस्केलेशन (De-escalation) अब तक नहीं हो पाया है। चीन की ओर से कई बार पीछे हटने की बात कही गई, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही दर्शाती है।

बातचीत बनाम ज़मीनी हकीकत

चीन की रणनीति पर सवाल उठना लाज़मी है। एक तरफ वो “सकारात्मक बातचीत” की बात करता है, वहीं दूसरी ओर एलएसी पर नए निर्माण कार्य, सैनिक तैनाती और सैन्य गतिविधियां भारत की चिंता बढ़ा रही हैं।भारत के रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता। कई बार उसने बातचीत की आड़ में स्थिति को बदलने की कोशिश की है।

आगे क्या?

अब जब 24वीं SRs बैठक की तैयारी की जा रही है, तो उम्मीद की जा रही है कि इस बार कोई ठोस नतीजा सामने आएगा। लेकिन अगर पिछले अनुभवों को देखें, तो ज्यादा उम्मीदें लगाना भी गलत होगा।भारत के लिए ज़रूरी है कि वह कूटनीतिक बातचीत के साथ-साथ सैन्य स्तर पर भी अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखे। सरकार ने भी सीमावर्ती इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण, सड़कें और एयरबेस जैसी व्यवस्थाओं को तेज़ी से विकसित किया है।

क्या चीन पर भरोसा किया जा सकता है?

सवाल सीधा है क्या चीन पर बातचीत के ज़रिए भरोसा किया जा सकता है?इतिहास और हालिया घटनाएं यही संकेत देती हैं कि सावधानी और सतर्कता ही सबसे बेहतर रणनीति है। जब तक एलएसी पर शांति और पुरानी स्थिति बहाल नहीं होती, तब तक भारत को चीन से “सामान्य रिश्तों” की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

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