September 8, 2025

लेफ्टिनेंट पारुल धारीवाल: परंपरा और प्रेरणा की मिसाल

कुछ कहानियाँ सिर्फ प्रेरणा नहीं होतीं, बल्कि इतिहास बन जाती हैं। लेफ्टिनेंट पारुल धाड़वाल की कहानी भी ऐसी ही एक मिसाल है। चेन्नई की ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से हाल ही में पास आउट होकर, पारुल ने न केवल भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त किया, बल्कि वे पांच पीढ़ियों वाले एक प्रतिष्ठित सैन्य परिवार की पहली महिला अधिकारी भी बन गईं।

छह सितंबर, 2025 को उन्हें भारतीय सेना की आयुध कोर में कमीशन मिला। इस उपलब्धि के साथ ही उन्होंने अपने कोर्स में मेरिट लिस्ट में पहला स्थान हासिल किया और राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक प्राप्त किया। यह पदक उनके कठिन परिश्रम, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है।

लेकिन पारुल की यह सफलता केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है। यह उनके सैन्य परिवार की पांच पीढ़ियों की सेवा का भी प्रतीक है। उनकी कहानी शुरू होती है उनके परपरदादा – सूबेदार हरनाम सिंह, जिन्होंने 1896 से 1924 तक देश की सेवा की। इसके बाद उनके परदादा – मेजर एल.एस. धाड़वाल (3 जाट रेजिमेंट) आए। तीसरी पीढ़ी में शामिल हैं कर्नल दलजीत सिंह धाड़वाल और ब्रिगेडियर जगत जामवाल, जिनकी सेवा और समर्पण आज भी याद किया जाता है।

उनके पिता मेजर जनरल के.एस. धाड़वाल, सेवा मेडल्स से सम्मानित हैं और उनके भाई कैप्टन धनंजय धाड़वाल 20 सिख रेजिमेंट में तैनात हैं। और अब इस गौरवशाली परंपरा में शामिल हुई हैं लेफ्टिनेंट पारुल धाड़वाल, जिन्होंने न केवल अपने परिवार का, बल्कि पूरे देश का सिर गर्व से ऊँचा किया है।

लेफ्टिनेंट पारुल धारीवाल की प्रेरक यात्रा

हौशियारपुर के जनौरी गांव से निकलकर पारुल ने अपनी मेहनत और समर्पण से साबित किया कि बेटियाँ किसी भी क्षेत्र में सीमित नहीं हैं। उनके OTA Chennai Training के दौरान दिखाए गए कौशल और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें कोर्स में शीर्ष स्थान दिलाया। राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक उनके कठिन परिश्रम और उत्कृष्ट प्रदर्शन का प्रतीक है।

पारुल की यह उपलब्धि न केवल सेना की महिला सशक्तिकरण की मिसाल है, बल्कि देश की बेटियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गई है। उनका संदेश साफ है – परंपराओं में जब बेटियाँ कदम रखती हैं, तो वे उन्हें और भी ऊँचा उठाती हैं।

पारंपरिक सैन्य परिवार और महिला सशक्तिकरण का संगम

लेफ्टिनेंट पारुल धारीवाल का परिवार भारतीय सेना में पांच पीढ़ियों से सेवा दे रहा है। उनका नाम इस गौरवशाली परंपरा में जुड़ना एक प्रेरक उदाहरण है। यह कहानी दिखाती है कि कैसे महिला अधिकारी भी पुरुषों के समकक्ष हर चुनौती को पार कर सकते हैं।

OTA Chennai से पास आउट होकर पारुल ने यह साबित किया कि सैन्य सेवा में महिला भागीदारी अब केवल सपने नहीं रही, बल्कि वास्तविकता बन चुकी है। उनके अध्यवसाय और नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रपति पदक दिलाया और पूरे देश में उनके योगदान की सराहना हुई।

लेफ्टिनेंट पारुल धारीवाल – एक प्रेरणा स्रोत

लेफ्टिनेंट पारुल धाड़वाल की कहानी हर भारतीय युवा, खासकर बेटियों के लिए प्रेरणा बन गई है। उनका संदेश साफ है – सपने देखें, मेहनत करें, और किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें। उनकी यह यात्रा यह साबित करती है कि महिला सशक्तिकरण और परंपरा साथ-साथ चल सकती हैं।

पारुल का नाम अब भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की नई मिसाल के रूप में लिया जाएगा। उनकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो समाज में किसी भी क्षेत्र में अपना योगदान देना चाहता है।

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