October 31, 2025

“पर्स खोया तोड़ दी खिड़की!” – ट्रेन में महिला की हरकत ने उठाए सवाल, सिस्टम या हम ग़लत?

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक महिला ट्रेन के अंदर खिड़की तोड़ती हुई दिखाई दी। वजह? उसका पर्स खो गया था। घटना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। गुस्से में उसने रेलवे की खिड़की तोड़ दी और अपने पर्स के खोने का गुस्सा सिस्टम पर उतार दिया। लेकिन सवाल उठता है — क्या ऐसा करना वाकई सही है?

महिला का दर्द समझ आता है, लेकिन उसका तरीका नहीं। क्योंकि खिड़की टूटने से नुकसान न सिर्फ रेलवे को हुआ, बल्कि देश के संसाधनों को भी।

“सिस्टम खराब है” या “हम सुधरना नहीं चाहते”?

हम अक्सर कहते हैं — सिस्टम ग़लत है, सरकार कुछ नहीं करती! पर जब एक साधारण यात्री खुद नुकसान करता है, तो क्या वह भी ‘सिस्टम’ का हिस्सा नहीं है? महिला का पर्स चोरी होना दुखद है, लेकिन इस घटना ने यह सवाल जरूर खड़ा किया है कि जब नागरिक ही कानून तोड़ने लगें, तो सुधार की उम्मीद किससे करें?
रेलवे जैसी सेवा जहां रोज़ लाखों लोग सफर करते हैं, उसकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना किसी भी स्थिति में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।

जनता की प्रतिक्रिया — “सज़ा होनी चाहिए या माफ़ी?”

वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया दो भागों में बंट गया — कुछ लोगों ने महिला की तकलीफ़ को समझा, तो कईयों ने कहा कि “पर्स चोरी का गुस्सा सार्वजनिक संपत्ति पर निकालना अपराध है।”
लोगों का कहना है — अगर हर कोई इसी तरह छोटी-छोटी बात पर सरकारी संपत्ति तोड़ने लगे, तो फिर व्यवस्था कैसे चलेगी? कई यूज़र्स ने लिखा – “ये सिर्फ एक खिड़की नहीं टूटी, देश की सोच टूटी है।”

रेलवे का रुख — “सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान, अपराध है!”

रेलवे अधिकारियों ने भी इस तरह की घटनाओं को गंभीर बताया है। भारतीय रेलवे अधिनियम के तहत, ट्रेन की किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना कानूनी अपराध है। इसके लिए जुर्माना और जेल – दोनों हो सकते हैं।

रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ऐसे मामलों में CCTV फुटेज और यात्रियों के बयान लेकर कार्रवाई करता है।
कानून कहता है — “गुस्से में की गई हरकत भी नुकसान ही करती है, सुधार नहीं।”

सवाल बड़ा है — सुधार कहाँ से शुरू हो?

हम हमेशा उम्मीद करते हैं कि सिस्टम बदले, भ्रष्टाचार खत्म हो, और कानून सख्त बने लेकिन असली सुधार वहीं से शुरू होता है — जहाँ एक नागरिक खुद नियमों का पालन करना शुरू करे। ट्रेन की खिड़की तोड़ने से किसी का नुकसान पूरा नहीं होता, बल्कि भरोसा और अनुशासन दोनों टूट जाते हैं।

शिक्षा और जागरूकता ही समाधान

ऐसी घटनाओं से यह साफ है कि जागरूकता और आत्म-नियंत्रण दोनों की जरूरत है। स्कूलों, दफ्तरों और सार्वजनिक अभियानों में नागरिक जिम्मेदारी सिखाना अब समय की मांग है। हमें यह समझना होगा कि – देश सिर्फ सरकार से नहीं बनता, हमसे बनता है।

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