उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने एक ऐसे अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश किया है, जो सालों से फेंसेडिल कफ सिरप और कोडीन युक्त दवाओं की तस्करी कर रहा था।यह कार्रवाई सहारनपुर में की गई, जहां चार आरोपी — विभोर राणा, विशाल सिंह, बिट्टू कुमार और सचिन कुमार को गिरफ्तार किया गया।एसटीएफ ने इनसे दो पिस्तौल, दस कारतूस, चार मोबाइल फोन और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए हैं।
2018 से सक्रिय था गिरोह, बांग्लादेश तक फैला नेटवर्क
जांच में खुलासा हुआ कि यह गिरोह 2018 से सक्रिय था और इनका नेटवर्क केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं था, बल्कि बिहार, झारखंड और बांग्लादेश तक फैला हुआ था।गिरोह ने फर्जी फर्म और नकली ड्रग लाइसेंस बनाकर कंपनियों से भारी मात्रा में कफ सिरप खरीदे।इन दवाओं को बाद में नशे के रूप में तस्करों को ऊंचे दामों पर बेचा जाता था।अब तक इस नेटवर्क से करीब 200 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति जमा करने का अनुमान है।
चार्टर्ड अकाउंटेंट और कई सहयोगी भी शामिल
एसटीएफ की शुरुआती जांच में पता चला है कि गिरोह के कई सहयोगी और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) भी इस नेटवर्क का हिस्सा हैं।
यह CA न केवल उनकी फर्जी फर्मों का अकाउंट संभालता था, बल्कि बैंक ट्रांजेक्शन को वैध दिखाने में भी मदद करता था।एसटीएफ ने फिलहाल सभी आरोपियों के बैंक अकाउंट, मोबाइल रिकॉर्ड और डिजिटल लेनदेन की जांच शुरू कर दी है ताकि पैसों के स्रोत तक पहुंचा जा सके।
फेंसेडिल और कोडीन: दवा या नशा?
फार्मासिस्ट फेडरेशन यूपी के अध्यक्ष सुनील कुमार यादव के अनुसार, फेंसेडिल कफ सिरप और कोडीन युक्त दवाएं सामान्यतः खांसी के इलाज में दी जाती हैं।लेकिन जब इनका सेवन अत्यधिक मात्रा में किया जाता है, तो ये नशीले पदार्थ बन जाती हैं।
इनका लगातार उपयोग लीवर, किडनी और दिमाग पर गंभीर असर डालता है और कई मामलों में लत और मानसिक रोग तक का कारण बनता है।
जांच जारी, हर कड़ी को खंगाल रही एसटीएफ
एसटीएफ अब इस पूरे नेटवर्क की जड़ तक पहुंचने में जुटी है।टीमें लगातार बैंक रिकॉर्ड, मोबाइल डेटा और ड्रग लाइसेंस डॉक्यूमेंट की जांच कर रही हैं।सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि यह मामला सिर्फ दवा तस्करी तक सीमित नहीं, बल्कि नशे के अंतरराष्ट्रीय कारोबार से भी जुड़ा हो सकता है।अगर सबूत पुख्ता मिले तो आने वाले दिनों में कई बड़े नाम भी सामने आ सकते हैं।

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