अमेरिकी शिक्षा जगत में तहलका मचाने वाला प्रस्ताव सामने आया है। ट्रम्प प्रशासन ने नौ प्रमुख विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रवेश को अब केवल 15% तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है। एमआईटी, ब्राउन और यूपेन जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में विदेशी छात्रों की संख्या अब कम हो सकती है। यह कदम शिक्षा जगत में चिंता की लहर लेकर आया है और छात्र समुदाय में भी भारी असंतोष देखा जा रहा है।
प्रस्ताव की मुख्य बातें
नए प्रस्ताव में केवल प्रवेश संख्या को सीमित करना ही नहीं बल्कि अन्य नियम भी शामिल किए गए हैं। इसमें जाति-निरपेक्ष प्रवेश, एसएटी आवश्यकताओं और ट्यूशन शुल्क में स्थिरता सुनिश्चित करने की बात भी शामिल है। इसका उद्देश्य अमेरिका के विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया को नियंत्रित करना और फीस की स्थिरता बनाए रखना है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इससे शिक्षा में विविधता और अंतरराष्ट्रीय छात्र समुदाय पर गंभीर असर पड़ेगा।
अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर प्रभाव
अगर यह नीति लागू होती है, तो हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए अमेरिका में उच्च शिक्षा का रास्ता मुश्किल हो जाएगा। कई छात्र अब अन्य देशों जैसे कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख कर सकते हैं। अमेरिका में शिक्षा पाने वाले छात्रों की संख्या कम होने से विश्वविद्यालयों में विविधता घट सकती है और वैश्विक स्तर पर अमेरिका की प्रतिस्पर्धा पर भी असर पड़ेगा।
विश्वविद्यालयों और शिक्षा विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
विश्वविद्यालय प्रशासन और शिक्षा विशेषज्ञ इस प्रस्ताव पर गहरी चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय छात्र अमेरिकी शिक्षा प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण हैं। उनके अनुभव, कौशल और योगदान से अमेरिका के शैक्षिक मानक मजबूत बने रहते हैं। इस नीति के लागू होने से छात्रों के अनुभव और कैंपस कल्चर पर भी असर पड़ेगा।
वैश्विक शिक्षा बाजार पर प्रभाव
दुनिया भर के छात्र अमेरिका को अपनी पढ़ाई के लिए पसंद करते हैं। अगर 15% सीमा लागू होती है, तो वैश्विक शिक्षा बाजार में बड़ा बदलाव आएगा। इससे अमेरिका की प्रतिस्पर्धा में अन्य देशों को बढ़त मिल सकती है। कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इस स्थिति का लाभ उठाकर अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित कर सकते हैं।
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