अमेरिका की राजनीति और टेक्नोलॉजी जगत का संगम तब सुर्खियों में आ गया जब व्हाइट हाउस में आयोजित डिनर के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश की शीर्ष टेक कंपनियों के सीईओ से सीधा सवाल पूछा आने वाले सालों में आप अमेरिका में कितना निवेश करने जा रहे हैं?यह सवाल सुनकर वहां मौजूद सभी उद्योगपति थोड़े समय के लिए चुप हो गए, लेकिन तभी मेटा (फेसबुक) के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने सभी को चौंका दिया। उन्होंने बड़ी आत्मविश्वास से कहा कि उनकी कंपनी अमेरिका में 600 बिलियन डॉलर का निवेश करेगी। यह बयान सुनते ही कमरे में तालियाँ और फुसफुसाहट गूंज उठी।
हॉट माइक पर हुआ बड़ा खुलासा
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। डिनर के थोड़ी देर बाद ही एक हॉट माइक पर जुकरबर्ग की आवाज़ रिकॉर्ड हो गई, जिसमें वे ट्रंप से कहते हुए सुने गए दरअसल, मुझे इस मुद्दे पर कोई ठोस जानकारी नहीं है।यानी जिस दावे ने पूरे अमेरिकी मीडिया और इंडस्ट्री का ध्यान खींचा, वही दावा मिनटों बाद संदिग्ध हो गया। इस खुलासे ने न सिर्फ ट्रंप प्रशासन को असमंजस में डाल दिया बल्कि निवेशकों और आम जनता के बीच भी सवाल खड़े कर दिए।
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क्या यह एक बड़ी चूक थी?
विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी शीर्ष सीईओ का इस तरह का अस्थिर बयान, खासकर 600 बिलियन डॉलर जैसी खगोलीय राशि पर, बाजार और नीतिगत चर्चाओं को प्रभावित कर सकता है।अगर यह केवल जुबानी फिसलन थी, तो यह जुकरबर्ग की विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।अगर यह जानबूझकर किया गया दावा था, तो यह निवेशकों को गुमराह करने जैसा भी माना जा सकता है।कई विश्लेषकों का यह भी कहना है कि इस तरह की गलती भविष्य में मेटा की सरकारी नीतियों और बिजनेस डील्स पर असर डाल सकती है।
ट्रंप और जुकरबर्ग पर असर
डोनाल्ड ट्रंप, जो खुद को अमेरिका में निवेश लाने का सबसे बड़ा चेहरा बताते हैं, इस घटना से कुछ असहज दिखे। वे अब दबाव में आ सकते हैं कि जुकरबर्ग के बयान को सही ठहराएं या फिर इसे “ग़लतफ़हमी” बताकर टाल दें। दूसरी ओर, जुकरबर्ग पर भी सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या वे बिना तथ्यों के इतनी बड़ी घोषणा करने के आदी हैं, या फिर यह केवल माहौल बनाने की कोशिश थी।
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