August 28, 2025

एनडीए का नया बिल: भ्रष्टाचार पर प्रहार या बिहार चुनाव की रणनीति?

बिल पेश करने का समय और मकसद

मॉनसून सत्र के अंतिम दिन केंद्र की एनडीए सरकार ने एक ऐसा विधेयक पेश किया, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। इस बिल में प्रावधान है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक मामले में 5 साल से अधिक की सजा पाता है और 30 दिन से ज्यादा जेल में रहता है, तो उसे पद से हटाया जाएगा। हालांकि, रिहाई के बाद वह अपने पद पर वापस आ सकता है। सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने इस समय ऐसा बिल क्यों पेश किया? क्या यह भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम है या बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष को घेरने की रणनीति?

संसदीय समिति को भेजने की रणनीति

आमतौर पर विवादास्पद बिलों को संसदीय समिति के पास विचार-विमर्श के लिए भेजा जाता है। इस बार सरकार ने बिल पेश करते ही इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव रखा। यह दर्शाता है कि सरकार को इस बिल को तुरंत पास कराने की जल्दबाजी नहीं है। इसका उद्देश्य शायद व्यापक चर्चा करवाना और जनता के बीच भ्रष्टाचार-विरोधी छवि को मजबूत करना हो। लेकिन, संविधान संशोधन बिल होने के कारण इसे पास कराने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत जरूरी है, जो एनडीए के पास फिलहाल नहीं है।

संसद में बहुमत की चुनौती

लोकसभा में 542 सांसदों में से एनडीए के पास केवल 293 सांसद हैं, जबकि दो-तिहाई बहुमत के लिए 361 वोट चाहिए। राज्यसभा में भी स्थिति अलग नहीं है, जहां 239 सांसदों में से एनडीए के पास 132 वोट हैं, जबकि 160 वोट चाहिए। अगर विपक्ष समर्थन नहीं देता, तो इस बिल को पास कराना असंभव है। इसके अलावा, बिल को आधे से ज्यादा राज्यों की विधानसभाओं से भी मंजूरी लेनी होगी। फिर भी, बीजेपी के लिए यह असंभव नहीं है, क्योंकि उनकी कई राज्यों में मजबूत पकड़ है।

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बिहार चुनाव और भ्रष्टाचार का मुद्दा

बिहार में विपक्ष द्वारा स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) और ‘वोट चोरी’ के आरोपों को लेकर चलाए जा रहे अभियान के बीच यह बिल एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। सरकार का यह कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती का संदेश देता है, जो बिहार चुनाव में जनता के बीच एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। विपक्ष अगर इस बिल का विरोध करता है या जेपीसी में शामिल होने से इनकार करता है, तो बीजेपी इसे भ्रष्ट नेताओं को बचाने के रूप में प्रचारित कर सकती है।

विपक्ष को घेरने की रणनीति

सूत्रों के मुताबिक, इस बिल का मकसद भ्रष्टाचार के मुद्दे को जनता के सामने लाना है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के एक मंत्री के जेल जाने के बाद भी इस्तीफा न देने के मामले ने इस बिल की जरूरत को उजागर किया। संविधान में ऐसी परिस्थितियों के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। सरकार का मानना है कि अगर विपक्ष इस बिल का विरोध करता है, तो यह संदेश जाएगा कि वे भ्रष्ट नेताओं को जेल से सत्ता चलाने की अनुमति देने के पक्ष में हैं।

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