August 28, 2025

ट्रंप की नीतियों पर उठते सवाल भारत-अमेरिका रिश्तों में दरार?

भारत और अमेरिका के रिश्तों को 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारियों में गिना जाता है। लेकिन हाल ही में अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी के बयान ने इन संबंधों की मौजूदा स्थिति को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। केरी ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति की कड़ी आलोचना करते हुए स्पष्ट कहा है कि उनके तौर-तरीके भारत जैसे सहयोगियों को अमेरिका से दूर कर रहे हैं।

क्या कह रहे हैं जॉन केरी?

इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम में बोलते हुए जॉन केरी ने कहा किडोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने सहयोगियों के साथ सम्मान और बातचीत के बजाय दबाव और अल्टीमेटम की नीति अपनाई है। भारत और अमेरिका जैसे देशों के रिश्ते इस तरह नहीं चल सकते।उन्होंने यह भी जोड़ा कि ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जो खींचतान रही है, वह “दुर्भाग्यपूर्ण” है। ऐसे तनाव भारत-अमेरिका साझेदारी को कमजोर कर सकते हैं।

ट्रंप प्रशासन और भारत व्यापार में तनाव

ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल के दौरान व्यापारिक मुद्दे बार-बार विवाद का कारण बने। विशेष रूप से टैरिफ और शुल्क के मुद्दे पर ट्रंप ने भारत पर दबाव बनाया H-1B वीज़ा नीति में सख्ती ने भारतीय पेशेवरों को प्रभावित किया भारत को विकासशील देशों की सूची से हटाना भी तनाव की वजह बनाभारत ने इन मतभेदों को बातचीत से सुलझाने की लगातार कोशिश की। जॉन केरी के मुताबिक, भारत ने लगभग 60% वस्तुओं पर ज़ीरो टैरिफ की पेशकश भी की थी, जो दर्शाता है कि भारत का रुख काफी सहयोगात्मक था। बावजूद इसके, ट्रंप प्रशासन ने कड़े और एकतरफा फैसले लिए।

सिर्फ केरी नहीं, बोल्टन भी दे चुके हैं चेतावनी

जॉन केरी से पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन भी ट्रंप की भारत नीति पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने ट्रंप के भारत के प्रति रवैये को अनावश्यक रूप से कठोर बताया था।इस तरह के लगातार बयान यह दर्शाते हैं कि ट्रंप की नीतियों ने न सिर्फ भारत को, बल्कि अमेरिका के कई सहयोगी देशों को भी परेशान किया।

आने वाले चुनाव और भारत की रणनीति

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत को अमेरिकी चुनावों में किसी खास नेता के साथ जाने की रणनीति बनानी चाहिए?भारत की विदेश नीति आम तौर पर गुटनिरपेक्ष और संतुलित रही है, लेकिन वैश्विक अनिश्चितताओं के इस दौर में, एक भरोसेमंद साझेदार की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है। लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था, और रणनीतिक हितों को देखते हुए भारत और अमेरिका का करीबी रहना भविष्य की वैश्विक स्थिरता के लिए आवश्यक है।जॉन केरी का बयान केवल ट्रंप की आलोचना नहीं, बल्कि एक सावधानीपूर्ण चेतावनी है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जब संबंधों को ताकत के बल पर चलाने की कोशिश होती है, तो दोस्ती टिकती नहीं — दरारें आती हैं।भारत को अब यह तय करना होगा कि वह अमेरिका के साथ अपने रिश्ते कैसे संतुलित रखे — खासकर तब, जब अमेरिकी राजनीति खुद तेज़ बदलावों से गुजर रही है।सहयोग और सम्मान ही सच्चे मित्रता के स्तंभ होते हैं दबाव नहीं।

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