प्रस्तावित विधेयकों का सार
केंद्र सरकार ने लोकसभा में तीन विधेयकों का एक सेट पेश किया है, जो गंभीर अपराधों में 30 दिन या उससे अधिक समय तक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और केंद्र व राज्यों के मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान करता है। ये विधेयक उन मामलों पर लागू होंगे, जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है। यदि आरोपी जेल से रिहा हो जाता है, तो उसे तत्काल उसी पद पर बहाल करने का भी प्रावधान है। बुधवार को केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा इन बिलों को पेश किए जाने के बाद संसद में विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, ने तीखा विरोध दर्ज किया और इन्हें संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में भेजने की मांग की।
शशि थरूर का समर्थन, पार्टी से अलग रुख
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने इन विधेयकों का समर्थन करते हुए कहा कि पहली नजर में ये उचित प्रतीत होते हैं। न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में उन्होंने कहा, “जो गलत काम करता है, उसे सजा मिलनी चाहिए और उसे किसी बड़े संवैधानिक या राजनीतिक पद पर नहीं रहना चाहिए।” हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि उन्हें बिलों की पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन सिद्धांत रूप में यह कदम सही लगता है। थरूर ने इन विधेयकों को जेपीसी में भेजकर विस्तृत चर्चा की वकालत भी की। उनका यह रुख पार्टी लाइन से अलग है, क्योंकि कांग्रेस ने इन बिलों को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक करार दिया है।
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कांग्रेस का विरोध: असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक?
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इन विधेयकों को “कठोर और अलोकतांत्रिक” बताया। वायनाड से सांसद प्रियंका ने आरोप लगाया कि इन्हें भ्रष्टाचार-विरोधी बताना जनता को गुमराह करने की कोशिश है। उन्होंने कहा, “कल को किसी मुख्यमंत्री पर कोई भी केस लगा दिया जाए, बिना दोष सिद्ध हुए 30 दिन हिरासत में रखा जाए, तो उसे पद छोड़ना होगा। यह पूरी तरह असंवैधानिक और दुर्भाग्यपूर्ण है।” कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इसे ध्यान भटकाने का हथकंडा करार देते हुए कहा कि सरकार प्रतिशोध की राजनीति को संवैधानिक जामा पहनाने की कोशिश कर रही है। वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया कि सत्ताधारी पार्टी इन बिलों के जरिए उन विपक्षी नेताओं को निशाना बनाना चाहती है, जिन्हें वह चुनावों में नहीं हरा सकी।
विधेयकों पर विवाद और भविष्य
इन विधेयकों ने राजनीतिक गलियारों में तीव्र बहस छेड़ दी है। जहां सरकार इन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम के रूप में पेश कर रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ मानता है। जेपीसी में भेजने की मांग के बीच इन बिलों का भविष्य संसद में होने वाली चर्चाओं पर निर्भर करेगा।
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