इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य से जुड़े आपत्तिजनक वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से तत्काल हटाने का बड़ा आदेश दिया है। जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस बृजराज सिंह की बेंच ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर (अब एक्स), यूट्यूब और गूगल जैसी प्रमुख कंपनियों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने एक हफ्ते के भीतर विस्तृत जवाब मांगा है, जिसमें याचिकाकर्ता की शिकायत पर की गई कार्रवाई और भविष्य में ऐसे कंटेंट को रोकने के उपाय बताने होंगे। यह आदेश 19 सितंबर 2025 को शरद चंद्र की याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी हुआ, जो रामभद्राचार्य के सम्मान की रक्षा का मुद्दा उठाता है।
याचिकाकर्ता की शिकायत: दिव्यांगता का अपमान और पुराने मामलों का दुरुपयोग
याचिकाकर्ता शरद चंद्र ने दावा किया कि रामभद्राचार्य के पुराने विवादास्पद बयानों को तोड़-मरोड़कर सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है। विशेष रूप से, उनके खिलाफ दिव्यांगता (जन्मजात पैरालिसिस) का मजाक उड़ाने वाले वीडियो प्रसारित हो रहे हैं। चंद्र ने कहा कि ये वीडियो न केवल व्यक्तिगत अपमान हैं, बल्कि धार्मिक संवेदनशीलता को भी ठेस पहुंचाते हैं। रामभद्राचार्य, जो 1950 में जन्मे गिरीधर मिश्रा के नाम से जाने जाते थे, एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान, कवि और समाजसेवी हैं। वे चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक हैं और दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चलाते हैं। याचिका में मांग की गई कि ऐसे कंटेंट को तुरंत ब्लॉक किया जाए, क्योंकि ये समाज में नकारात्मक संदेश फैला रहे हैं। कोर्ट ने इस पर तत्काल संज्ञान लिया और हटाने का निर्देश दिया।
कोर्ट का आदेश: तत्काल हटाव और जवाब की मांग, यूट्यूबर पर कार्रवाई
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि सभी प्लेटफॉर्म्स को आपत्तिजनक वीडियो को तुरंत हटाना होगा। इसके अलावा, यूट्यूबर शशांक शेखर पर कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय दिव्यांगजन आयोग को निर्देशित किया गया है, क्योंकि इन वीडियो में उनकी कथित भूमिका बताई गई है। प्लेटफॉर्म्स को बताना होगा कि शिकायत मिलने पर क्या कदम उठाए गए और आगे रोकथाम के लिए एल्गोरिदम या मॉनिटरिंग सिस्टम कैसे मजबूत करेंगे। यह आदेश आईटी एक्ट की धारा 69ए के तहत जारी किया गया, जो आपत्तिजनक कंटेंट को ब्लॉक करने की अनुमति देता है। कोर्ट ने जोर दिया कि धार्मिक नेताओं के खिलाफ फेक या अपमानजनक सामग्री समाजिक सद्भाव को भंग करती है। एक हफ्ते में जवाब न देने पर आगे की कार्रवाई की चेतावनी दी गई।
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सामाजिक प्रभाव: गलत संदेश रोकना जरूरी, कानूनी पूर्व उदाहरण
रामभद्राचार्य के खिलाफ ये वीडियो सामाजिक और धार्मिक रूप से संवेदनशील हैं। वे राम जन्मभूमि मामले में गवाह रह चुके हैं और पद्म विभूषण से सम्मानित हैं। याचिकाकर्ता का तर्क है कि दिव्यांगता का अपमान न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि दिव्यांग समुदाय को भी हतोत्साहित करता है। कोर्ट का यह कदम गलत संदेशों को रोकने में महत्वपूर्ण है, खासकर सोशल मीडिया के दौर में जहां वायरल कंटेंट तेजी से फैलता है। भारत में पहले भी हाईकोर्ट ने धार्मी भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले कंटेंट पर सख्ती दिखाई है, जैसे 2024 में रामभद्राचार्य के ही एक बयान पर याचिका खारिज की गई थी। यह आदेश प्लेटफॉर्म्स के लिए चुनौती है, क्योंकि उन्हें कंटेंट मॉडरेशन को मजबूत करना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे डिजिटल नैतिकता पर बहस तेज होगी।
भविष्य की चुनौतियां: प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी और कानूनी संदेश
यह फैसला सोशल मीडिया कंपनियों के लिए एक सख्त संदेश है कि भारत में धार्मिक और सामाजिक संवेदनशीलता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्लेटफॉर्म्स को अब न केवल हटाव बल्कि प्रिवेंटिव मेजर्स साबित करने होंगे। रामभद्राचार्य जैसे नेताओं के खिलाफ कैंपेन समाज में विभाजन पैदा कर सकते हैं, इसलिए कोर्ट की भूमिका सराहनीय है। आने वाले दिनों में आयोग की कार्रवाई और प्लेटफॉर्म्स का जवाब तय करेगा कि मामला कितना आगे बढ़ेगा। यह घटना डिजिटल अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन पर नई चर्चा छेड़ रही है।

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