October 15, 2025

ट्रंप की बगराम एयरबेस पर नजर: तालिबान की सख्त ना, अमेरिका को धमकी—क्या युद्ध की आहट?

परिचय: बगराम विवाद फिर गरमाया, ट्रंप vs तालिबान का नया दौर

अमेरिका अफगानिस्तान की धरती पर वापसी की कोशिश कर रहा है? बगराम एयरबेस, जो कभी अमेरिकी सैन्य ताकत का प्रतीक था, अब फिर सुर्खियों में है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में खुलेआम कहा कि अमेरिका इस रणनीतिक हवाई अड्डे को तालिबान से वापस हासिल करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन तालिबान ने साफ शब्दों में खारिज कर दिया—”नहीं, शुक्रिया!” यह सिर्फ बयानबाजी नहीं, बल्कि कूटनीतिक चेतावनी है जो अफगान संप्रभुता की रक्षा का संदेश देती है। 2021 में अमेरिकी सेना की अराजक वापसी के दौरान तालिबान ने बगराम पर कब्जा किया था, और अब चार साल बाद ट्रंप का यह बयान पूरे क्षेत्र में भूचाल ला रहा है। क्या यह चीन के खिलाफ रणनीति है या चुनावी जोर-शोर? आइए, इस विवाद की गहराई समझें, जहां शब्दों की जंग असली हथियार बन रही है।

ट्रंप का दावा: बगराम क्यों चाहिए, चीन का खतरा?

ट्रंप ने 18 सितंबर 2025 को ब्रिटेन के बकिंघमशायर में पत्रकारों से कहा, “हम इसे वापस लेने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि तालिबान को हमारी जरूरत है।” उनका तर्क साफ है—बगराम दुनिया के सबसे बड़े एयरबेस में से एक है, जिसकी दो मील लंबी रनवे कार्गो प्लेन, फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर्स के लिए बनी है। यह अफगानिस्तान के उत्तरी हिस्से में काबुल से महज 64 किमी दूर है, और ट्रंप के मुताबिक, “यह चीन के न्यूक्लियर मिसाइल उत्पादन स्थल से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है।” ट्रंप ने जो बाइडेन की 2021 की वापसी को “पूर्ण आपदा” बताया, जिसमें अमेरिका ने हथियार, बेस और अफगान सरकार सब छोड़ दिया। उनका कहना है कि अगर उनकी सरकार होती, तो बगराम रखा जाता—चीन को घेरने के लिए। हाल ही में ट्रंप के विशेष दूत एडम बोहलर ने काबुल में तालिबान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से मुलाकात की, जो बंधक मुक्ति पर थी, लेकिन बगराम का मुद्दा भी उठा। ट्रंप ने 20 सितंबर को चेतावनी दी, “अगर नहीं लौटाया, तो बुरे हालात होंगे।” यह अमेरिकी विदेश नीति में नया मोड़ है, जहां तालिबान से “लिवरेज” की बात हो रही है।

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तालिबान की जवाबी कार्रवाई: संप्रभुता अटल, दोहा समझौते का हवाला

तालिबान ने ट्रंप के बयान को पूरी तरह खारिज कर दिया। मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने 21 सितंबर को कहा, “बगराम अफगानिस्तान का है और रहेगा। अमेरिका तर्कसंगत बने।” उन्होंने दोहा समझौते (2020) का जिक्र किया, जहां ट्रंप प्रशासन ने ही वादा किया था कि अमेरिका अफगानिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेगा। मुजाहिद ने कहा कि अफगान विदेश नीति अब आर्थिक साझेदारी और क्षेत्रीय सम्मान पर केंद्रित है, न कि सैन्य हस्तक्षेप पर। तालिबान के विदेश मंत्रालय के अधिकारी जाकिर जलाली ने भी विचार को “असंभव” बताया। तालिबान ने अमेरिकी बयान को धमकी माना और कहा कि कोई भी शत्रुता का सामना “सबसे मजबूत प्रतिक्रिया” मिलेगी। 2024 में तालिबान ने बगराम पर अमेरिकी हथियारों का भव्य प्रदर्शन किया था, जो उनकी ताकत दिखाने का प्रतीक था। आर्थिक संकट, मानवाधिकार विवादों और आंतरिक कलह के बावजूद, तालिबान खुद को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का खिलाड़ी साबित कर रहा है। वे अमेरिका से सामान्य संबंध चाहते हैं, लेकिन बेस लौटाना नामुमकिन।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: बगराम का काला इतिहास और 2021 की अराजकता

बगराम एयरबेस अफगानिस्तान युद्ध का केंद्र था। 2001 के 9/11 हमलों के बाद अमेरिका ने इसे मुख्य हब बनाया, जहां जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और ट्रंप ने दौरा किया। यहां 100,000 से ज्यादा सैनिक तैनात थे, लेकिन तालिबान के हमलों का शिकार भी बना। “वॉर ऑन टेरर” के दौरान हजारों कैदी बिना ट्रायल के रखे गए, कईयों पर यातनाएं हुईं। 2021 में अमेरिकी वापसी के दौरान बगराम पहले छोड़ा गया, जिससे काबुल एयरपोर्ट पर अराजकता फैली। स्टेट डिपार्टमेंट की 2023 रिपोर्ट कहती है कि बगराम छोड़ना वापसी की विफलता का कारण बना। अब ट्रंप इसे वापस चाहते हैं, लेकिन तालिबान इसे अपनी जीत का प्रतीक मानता है।

निहितार्थ: क्या ट्रंप का दांव चुनावी या रणनीतिक?

ट्रंप का बयान चुनावी राजनीति का हिस्सा लगता है—अफगानिस्तान वापसी को बाइडेन की नाकामी बताकर वोट बटोरना। लेकिन चीन का जिक्र असली चिंता दर्शाता है। अगर अमेरिका बगराम लेता है, तो मध्य एशिया में तनाव बढ़ेगा, पाकिस्तान और ईरान प्रभावित होंगे। तालिबान की मजबूत प्रतिक्रिया दिखाती है कि वे अब कमजोर नहीं; आर्थिक मदद के लिए दरवाजा खुला है, लेकिन सैन्य उपस्थिति नहीं। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह टिप ऑफ द आइसबर्ग है—अमेरिका-तालिबान वार्ता जारी है, लेकिन बगराम पर समझौता मुश्किल।

अमेरिका लौटेगा या सिर्फ बयानबाजी? भविष्य अनिश्चित

क्या अमेरिका वाकई अफगान जमीन पर छाप छोड़ेगा? शायद नहीं—तालिबान की चेतावनी और अंतरराष्ट्रीय दबाव इसे रोकेंगे। ट्रंप की “जंग छेड़ने” की धमकी हवा में उड़ सकती है, लेकिन यह अफगानिस्तान को फिर अस्थिर करने का खतरा पैदा कर रही है। तालिबान अब बंदूकों के साथ शब्दों से भी लड़ रहा है, जो उनकी परिपक्वता दिखाता है। वैश्विक शांति के लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष संवाद चुनें, न कि टकराव। आपको क्या लगता है—क्या बगराम फिर अमेरिकी झंडे लहराएगा? टिप्पणियों में बताएं!

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