October 31, 2025

ऋषिकेश में तनु रावत विवाद: संस्कृति की आड़ में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल

उत्तराखंड की पवित्र तीर्थनगरी ऋषिकेश, जो योग, अध्यात्म और शांति का प्रतीक मानी जाती है— वहीं आज एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। प्रसिद्ध सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर तनु रावत का एक डांस वीडियो, जो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद ‘संस्कृति’ और ‘स्वतंत्रता’ की बहस छेड़ गया है।

वीडियो से शुरू हुआ विवाद

तनु रावत का यह डांस वीडियो श्री जयराम योग आश्रम के फ्लैट में शूट किया गया था। वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होते ही राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन ने इसका विरोध किया। संगठन का कहना है कि ऋषिकेश जैसी धार्मिक नगरी में “इस तरह के डांस” से “आध्यात्मिक माहौल” को ठेस पहुंचती है।

लेकिन सवाल उठता है— क्या किसी संगठन को यह अधिकार है कि वह किसी नागरिक की अभिव्यक्ति पर रोक लगाए, वो भी बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के?

कानून बनाम मॉरल पुलिसिंग

भारत का संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अगर किसी कंटेंट से किसी को आपत्ति है, तो कानूनी प्रक्रिया तय है— शिकायत दर्ज कीजिए, जांच कराइए, लेकिन संगठन खुद “न्यायाधीश” बन जाए, यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।

यही वजह है कि आज सवाल सिर्फ तनु रावत का नहीं, बल्कि हर उस युवा का है जो अपनी कला, अपनी सोच और अपने हुनर से सोशल मीडिया पर पहचान बना रहा है।

तनु रावत कौन हैं? सिर्फ डांसर नहीं, भारत की युवा प्रतिनिधि

तनु रावत सिर्फ एक सोशल मीडिया क्रिएटर नहीं हैं। वो उन भारतीय कलाकारों में से हैं जिन्होंने अपने डांस वीडियो से ग्लोबल प्लेटफ़ॉर्म्स पर भारत का नाम रोशन किया है। कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर परफॉर्म किया, और आज करोड़ों युवा उन्हें रोल मॉडल मानते हैं।

ऐसे में सवाल और बड़ा हो जाता है—क्या एक कलाकार को अपनी कला दिखाने के लिए संस्कृति की परिभाषा में कैद होना पड़ेगा?कपड़े, नाच या गाना— क्या इन्हीं से किसी का “चरित्र” या “संस्कार” तय होगा?

संस्कृति बनाम संविधान: असली संघर्ष यहीं है

यह बहस नई नहीं है। कुछ महीने पहले मिस ऋषिकेश ऑडिशन में भी यही विवाद हुआ था, जहां वेस्टर्न ड्रेस पर आपत्ति जताई गई थी और कहा गया कि “ये हमारी संस्कृति नहीं।” लेकिन तब भी प्रतिभागियों ने जवाब दिया था -“संस्कार कपड़ों से नहीं, व्यवहार से दिखते हैं।”

ऋषिकेश जैसी धार्मिक नगरी का मतलब यह नहीं कि वहां कला या आधुनिकता की जगह नहीं है। संस्कृति और आधुनिकता साथ-साथ चल सकते हैं, बस जरूरत है संतुलन और समझदारी की।

संगठनों की भूमिका: मर्यादा या मनमानी?

किसी भी संगठन को कानून से ऊपर नहीं रखा जा सकता। अगर हर समूह अपने हिसाब से तय करेगा कि कौन क्या पहने, कहे या करे- तो फिर लोकतंत्र नहीं, अराजकता बचेगी। कानून व्यवस्था का काम प्रशासन और पुलिस का है, न कि किसी “संस्कृति रक्षक” संगठन का।

संस्कृति तब जीवित रहती है जब स्वतंत्रता जीवित रहे

भारत की संस्कृति स्वीकार्यता और सहिष्णुता की रही है। यह वही देश है जहां नृत्य, संगीत और योग— तीनों को पूजा का रूप माना गया। तो फिर किसी कलाकार के डांस से संस्कृति को खतरा कैसे?

ऋषिकेश की पहचान सिर्फ मंदिरों और घाटों से नहीं, बल्कि वहां के लोगों की विचारशीलता और आध्यात्मिकता से भी है। अगर आज वहां किसी की आज़ादी पर पहरा लगाया जाएगा, तो कल रचनात्मकता का दम घुट जाएगा।

संस्कृति का सम्मान जरूरी, लेकिन कानून सर्वोपरि

संस्कृति का मतलब यह नहीं कि किसी की अभिव्यक्ति को दबाया जाए। अगर समाज को संतुलित रखना है, तो जरूरी है कि हम संविधान, कानून और स्वतंत्रता— तीनों का समान सम्मान करें। क्योंकि “संस्कृति वहीं जीवित रहती है, जहां स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है।”

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