23 सितंबर 2025 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का भाषण वैश्विक कूटनीति में भूचाल ला गया। उन्होंने चीन और भारत को यूक्रेन युद्ध के ‘प्राइमरी फंडर’ करार दिया, रूस पर कड़े टैरिफ की धमकी दी और खुलासा किया कि अमेरिका को इस संघर्ष से हथियार बिक्री के जरिए लाभ हो रहा है। ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडा साफ नजर आया, लेकिन यह बयान भारत-चीन संबंधों और यूरोपीय ऊर्जा नीतियों पर सवाल खड़े कर रहा है। आइए, इसकी गहराई समझें।
मुख्य आरोप: रूसी तेल खरीदकर युद्ध को फाइनेंस कर रहे चीन-भारत
ट्रंप ने कहा, “चीन और भारत रूसी तेल खरीदकर इस युद्ध के प्राइमरी फंडर हैं।” 2024 में चीन ने 100 मिलियन टन से ज्यादा रूसी कच्चा तेल आयात किया, जबकि भारत ने डिस्काउंटेड रेट पर खरीद बढ़ाई। ट्रंप ने NATO देशों पर भी निशाना साधा, कहा कि वे भी रूसी ऊर्जा खरीद रहे हैं, जो ‘खुद के खिलाफ फंडिंग’ है।
यह भारत के लिए असहज है, क्योंकि अमेरिका के साथ उसके रक्षा और व्यापार संबंध मजबूत हैं। हाल ही में PM मोदी को बधाई देने वाले ट्रंप का यह हमला ट्रेड डील वार्ता के बीच आया। भारत ने ऊर्जा सुरक्षा का हवाला देते हुए चुप्पी साधी, लेकिन कूटनीतिक स्रोतों का कहना है कि यह रणनीतिक खरीद है।

रूस पर टैरिफ धमकी: समझौता न हुआ तो कड़ी कार्रवाई
ट्रंप ने रूस को चेताया, “अगर यूक्रेन पर जल्द समझौता नहीं हुआ, तो हम हाई लेवल टैरिफ और सैंक्शंस लगाएंगे।” जनवरी 2025 से 50% सेकेंडरी टैरिफ की बात दोहराई गई। ट्रंप का दावा: उनकी मौजूदगी में युद्ध न शुरू होता। लेकिन पुतिन की मांगें—क्रिमिया और चार क्षेत्रों पर कब्जा—समझौते को मुश्किल बना रही हैं।
ट्रंप ने यूक्रेन को सपोर्ट देते हुए कहा कि वह खोए क्षेत्र वापस ले सकता है, और NATO को रूसी विमानों को मार गिराने की सलाह दी। जेलेंस्की से मुलाकात के बाद ट्रंप ने शांति के लिए ‘अच्छी आइडियाज’ का जिक्र किया।
अमेरिका का ‘लाभ’: युद्ध से हथियार बिक्री में उछाल
ट्रंप ने स्वीकार किया, “मैं युद्ध से पैसे नहीं कमाना चाहता, लेकिन NATO हमसे हथियार खरीद रहा है।” 2024 में यूएस आर्म्स सेल्स 117.9 अरब डॉलर के पहुंचे, ज्यादातर यूरोप को। जुलाई 2025 में NATO डील हुई, जहां 8+ देश पैट्रियट सिस्टम और मिसाइलें खरीद रहे।
आलोचक इसे ‘युद्ध को बिजनेस’ बनाने का आरोप लगा रहे। ट्रंप ने UN को ‘ग्लोबलिस्ट इंस्टीट्यूशन’ कहा, जो विश्व व्यवस्था को कमजोर कर रहा है।
वैश्विक प्रतिक्रियाएं: चीन का पलटवार, भारत की चुप्पी
चीन ने जवाब दिया, “अमेरिका और EU भी रूस से व्यापार कर रहे।” रूस ने ‘जड़ों को संबोधित करने’ की बात की। भारत ने आधिकारिक बयान टाला, लेकिन MEA स्रोतों ने ऊर्जा जरूरतों का पक्ष लिया। X पर बहस तेज: कुछ इसे ट्रंप की ‘डिप्लोमेसी’ कह रहे, तो कुछ ‘राजनीतिक दबाव’।
निष्कर्ष: शांति या आर्थिक दबाव की जंग?
ट्रंप का बयान यूक्रेन को आर्थिक हथियार से हल करने की कोशिश है, लेकिन वैश्विक व्यापार प्रभावित हो सकता है। भारत-चीन के लिए चुनौती, अमेरिका के लिए लाभ। क्या यह शांति लाएगा या तनाव बढ़ाएगा? संवाद ही रास्ता है।

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