पाकिस्तान की सेना और सरकार के लिए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) एक गंभीर खतरा बन चुका है। इस साल के पहले छह महीनों में टीटीपी ने 1,000 से अधिक हमलों की जिम्मेदारी ली है, जिनमें से 300 से ज्यादा हमले अकेले जुलाई में हुए। पाकिस्तान ने टीटीपी को आतंकी संगठन के रूप में पेश कर इसका मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन टीटीपी ने अपनी रणनीति में बदलाव कर लिया है। इस बदलाव ने पश्तून राष्ट्र की मांग को बल दिया है, जिससे पाकिस्तान के विघटन की आशंका बढ़ गई है।
धार्मिक उग्रवाद से पश्तून संरक्षक की ओर
टीटीपी का उदय 2007 में पाकिस्तान के कबायली इलाकों में उग्रवादी समूहों के गठबंधन से हुआ था। शुरू में यह अल कायदा और अफगान तालिबान के साथ मिलकर कट्टर इस्लामी विचारधारा पर आधारित था। टीटीपी ने अपने अभियानों को रक्षात्मक जिहाद के रूप में पेश करते हुए सुरक्षा बलों, नागरिकों और अल्पसंख्यकों पर हमले किए। 2014 में पाकिस्तानी सेना के सैन्य अभियानों और अमेरिकी ड्रोन हमलों ने टीटीपी को कमजोर किया, जिसके चलते 2018 तक इसके हमले लगभग बंद हो गए। हालांकि, 2019 से टीटीपी ने फिर से उभरना शुरू किया और 2021 के बाद इसकी गतिविधियां तेजी से बढ़ीं। इस बार टीटीपी ने अपनी वैचारिक रणनीति बदली और पश्तून जातीय पहचान व स्थानीय शिकायतों को अपने प्रचार का हिस्सा बनाया।
सामाजिक समर्थन और जिरगा की रणनीति
टीटीपी ने अपनी छवि को धार्मिक उग्रवादी संगठन से पश्तून समाज के हितैषी के रूप में बदलने की कोशिश की है। इसने आदिवासी समुदायों में अपनी पैठ बढ़ाई और खुद को पश्तून राष्ट्र का संरक्षक बताने के लिए प्रचार अभियान चलाया। अपने बयानों और भाषणों में टीटीपी अपने लड़ाकों को “धरतीपुत्र” कहकर पश्तून गौरव और नागरिक पीड़ाओं को उजागर करता है। खास तौर पर, टीटीपी ने पश्तून समाज में जिरगा (पारंपरिक सभा) में हिस्सा लेना शुरू किया, जो स्थानीय समुदायों में अहम भूमिका निभाता है। जिरगा के माध्यम से टीटीपी ने अधिकारियों को पकड़ने और उनकी रिहाई जैसे मामलों में मध्यस्थता कर अपनी छवि को कबायली न्याय व्यवस्था के हिस्से के रूप में मजबूत किया।
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पश्तून राष्ट्र का सपना और पाकिस्तान का संकट
टीटीपी ने स्वात और उत्तरी वजीरिस्तान जैसे क्षेत्रों में स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए हिंसा का ठीकरा सेना पर फोड़ा है। स्वात में बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को उसने सरकार की विफलता से जोड़ा, जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष बढ़ा। इस रणनीति के जरिए टीटीपी ने खुद को पश्तून हितों का रक्षक साबित करने की कोशिश की है। इसका प्रभाव इतना बढ़ गया है कि पाकिस्तानी सेना और सरकार के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं है। टीटीपी की बढ़ती ताकत और पश्तून राष्ट्र की मांग ने पाकिस्तान के सामने एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया है, जिससे देश के विघटन की आशंका को बल मिल रहा है।
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