देश की सबसे हाईटेक, सबसे प्रीमियम और सबसे तेज़ ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) एक बार फिर विवादों में है। 22415 वाराणसी-नई दिल्ली वंदे भारत ट्रेन के C-7 कोच में बुधवार को जो हुआ, उसने रेलवे की तकनीकी तैयारियों और मेंटेनेंस पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सुबह 6 बजे वाराणसी से रवाना हुई ट्रेन में जैसे ही प्रयागराज पहुंचने से पहले C-7 कोच की 76 नंबर सीट के ऊपर से लगातार पानी टपकने लगा, यात्रियों की चिंता बढ़ गई। AC ने भी काम करना बंद कर दिया, जिससे कोच में उमस और गर्मी का माहौल बन गया।
हाईटेक ट्रेन, लेकिन सुविधाओं का अभाव
वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेन, जिसे भारत के रेलवे सिस्टम का भविष्य बताया जा रहा है, उसमें इस तरह की तकनीकी खामियां सामने आना बेहद चौंकाने वाला है। न ठंडी हवा, न सूखी सीट और न ही यात्रा के दौरान कोई संतोषजनक जवाब—यात्रियों ने सफर को “सजा” बताया।
इस घटना ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि केवल हाईस्पीड और हाईटेक दिखाने से यात्रियों को संतोष नहीं मिलेगा। उन्हें सुरक्षित, सुविधाजनक और विश्वसनीय सेवा भी चाहिए।
यात्रियों की शिकायत, लेकिन सुनवाई नहीं!
प्रभावित यात्रियों में से एक ने ‘रेल मदद’ ऐप पर शिकायत दर्ज की और सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करते हुए रेल मंत्रालय को टैग किया, लेकिन किसी भी अधिकारी या कर्मचारी की ओर से कोई त्वरित प्रतिक्रिया नहीं मिली।
यात्रियों का कहना था कि AC पूरी तरह से ठप हो गया और वे बिना कूलिंग के पूरे सफर में परेशान रहे। शिकायतों को नजरअंदाज़ कर दिया गया, जिससे यात्री बेहद नाराज हुए।
सोशल मीडिया पर रेलवे की आलोचना
इस घटना का वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। लोग कह रहे हैं कि इतना महंगा टिकट लेकर भी ऐसी बदहाल सेवा मिलना शर्मनाक है।
कुछ यात्रियों ने लिखा कि अगर वंदे भारत जैसी ट्रेन में भी कूलिंग और लीकेज जैसी समस्याएं हैं, तो रेलगाड़ी का भविष्य कितना भरोसेमंद है?
यह सवाल भी उठ रहा है कि अगर मेंटेनेंस में इतना पैसा खर्च हो रहा है, तो फिर ऐसी खराबी कैसे हो रही है? क्या यह सिर्फ एक “दिखावटी हाईस्पीड ट्रेन” बनकर रह गई है?
रेलवे की चुप्पी, यात्रियों की चिंता
रेल मंत्रालय ने अब तक इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, जिससे लोगों की नाराज़गी और बढ़ रही है। वंदे भारत को Make in India का गर्व बताया जाता है, लेकिन ऐसी घटनाएं उसकी साख पर सवाल उठाती हैं।
अगर ऐसी समस्याएं बार-बार सामने आती हैं, तो यह रेलवे की तैयारियों, क्वालिटी कंट्रोल और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है।
क्या वंदे भारत में ऐसी लापरवाही स्वीकार्य है?
इस सवाल पर अब बहस छिड़ चुकी है: क्या एक प्रीमियम ट्रेन में यात्रियों को ऐसी असुविधाएं मिलनी चाहिए? क्या रेलवे को अब यात्रियों के अनुभवों को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए?
टेक्नोलॉजी तब ही सफल मानी जाती है जब वह आम आदमी की परेशानी कम करे। और अगर वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेन में भी पानी टपके और कूलिंग ना मिले, तो फिर प्रगति का क्या मतलब?
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