SIR अभियान से गरमाई सियासत
बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता सत्यापन अभियान (SIR) की शुरुआत के बाद देश की सियासत में उबाल आ गया है। इस अभियान ने न केवल राजनीतिक दलों के बीच तनाव बढ़ाया, बल्कि संसद को भी 15 दिनों तक ठप कर दिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मतदाता सूची में धांधली का गंभीर आरोप लगाकर इस मुद्दे को और हवा दी। कांग्रेस इसे ‘वोट चोरी का घोटाला’ करार दे रही है, जिसमें निशाने पर चुनाव आयोग और बीजेपी की मोदी सरकार है। विपक्ष ‘लोकतंत्र खतरे में है’ के नारे के साथ इस मुद्दे को जन आंदोलन का रूप देना चाहता है। कांग्रेस का दावा है कि यह विरोध 1975 के जेपी आंदोलन से भी बड़ा होगा।
भ्रष्टाचार का पुराना दांव
भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का मुद्दा हमेशा से सत्ता परिवर्तन का कारण रहा है। 1989 में वीपी सिंह ने बोफोर्स घोटाले को उठाकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था। उनकी रणनीति थी कि जनसभाओं में बोफोर्स से जुड़े कथित नामों वाली पर्ची दिखाकर जनता का समर्थन हासिल किया जाए। इस रणनीति ने कांग्रेस को 404 से 197 सीटों पर ला पटका। 2019 में राहुल गांधी ने राफेल घोटाले का मुद्दा उठाया, लेकिन यह दांव असफल रहा और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया। 2024 में कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के साथ जातीय राजनीति का तड़का लगाया, जिससे उनकी सीटें 100 तक पहुंचीं, लेकिन बीजेपी को सत्ता से रोकने में वे पूरी तरह कामयाब नहीं हुए।
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जाति और भ्रष्टाचार का कॉकटेल
1990 के दशक में मंडल कमीशन और जातीय राजनीति ने भारतीय सियासत को नया रंग दिया। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर के बावजूद कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। नरसिम्हा राव की सरकार बनी, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों ने उसे भी घेर लिया। 1996 में कांग्रेस की सीटें घटकर 140 रह गईं। इसके बाद 2004 और 2009 में यूपीए की सरकार बनी, जब भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। लेकिन 2014 में घोटालों से घिरी यूपीए सरकार की हार ने साबित किया कि जनता भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील है।
लोकतंत्र और संविधान का नया नैरेटिव
2024 में अंबानी-अडाणी जैसे मुद्दों के असफल होने के बाद राहुल गांधी ने ‘लोकतंत्र और संविधान खतरे में’ का नारा अपनाया। उनका आरोप है कि बीजेपी, चुनाव आयोग की मदद से मतदाता सूची में हेरफेर कर रही है। इस मुद्दे को कांग्रेस आरजेडी, टीएमसी, और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन बनाना चाहती है। विपक्ष को उम्मीद है कि यह नैरेटिव जनता को जोड़ेगा और बीजेपी की एंटी-इनकंबेंसी उनके पक्ष में काम करेगी।
क्या 1975 जैसा माहौल बनेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि लोकतंत्र और संविधान का मुद्दा बीजेपी को परेशान कर सकता है, लेकिन 1975 जैसा आंदोलन खड़ा करना आसान नहीं। उस समय महंगाई और बेरोजगारी ने जनता को आंदोलन के लिए प्रेरित किया था। आज बीजेपी की मजबूत आईटी सेल और गठबंधन सहयोगी इस मुद्दे को कमजोर कर सकते हैं। बिहार के आगामी चुनाव इस रणनीति का असली इम्तिहान होंगे।
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