करोड़ों की नौकरी छोड़कर जैन साधु बने प्रकाश शाह: मुकेश अंबानी के करीबी VP की प्रेरणादायक कहानी

आज के समय में जब ज़्यादातर लोग पैसा, पोजीशन और लग्ज़री जीवन के पीछे भाग रहे हैं, वहीं एक ऐसी कहानी सामने आई है जो सोचने पर मजबूर कर देती है। ये कहानी है प्रकाश शाह की — एक नाम जो कभी रिलायंस इंडस्ट्रीज के ऊँचे ओहदे पर था, और अब वो सबकुछ त्यागकर जैन साधु बन चुके हैं।

कौन हैं प्रकाश शाह?

प्रकाश शाह, रिलायंस इंडस्ट्रीज के वाइस प्रेसिडेंट और चेयरमैन मुकेश अंबानी के बेहद करीबी माने जाते थे। IIT बॉम्बे से पोस्ट ग्रेजुएट प्रकाश शाह एक केमिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने रिलायंस के जामनगर रिफाइनरी प्रोजेक्ट और पेटकोक मार्केटिंग जैसे अहम विभागों को संभाला।

बताया जाता है कि उनकी सालाना सैलरी लगभग ₹75 करोड़ थी। आलीशान बंगलों, लग्जरी गाड़ियों और कॉर्पोरेट पॉवर से भरी जिंदगी को पीछे छोड़ना कोई आसान फैसला नहीं होता। लेकिन प्रकाश शाह ने ये कर दिखाया।

दीक्षा लेकर बने जैन साधु

इस साल महावीर जयंती के अवसर पर, प्रकाश शाह ने अपनी पत्नी नैन शाह के साथ मिलकर आध्यात्मिक जीवन अपनाया और जैन साधु बनने की दीक्षा ले ली। दीक्षा समारोह की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिनमें दोनों साधु वेश में, नंगे पांव और बेहद सादे वस्त्रों में दिख रहे हैं। अब उन्होंने अपने नाम, पद और संपत्ति से पूरी तरह किनारा कर लिया है।

त्याग का फैसला कैसे हुआ?

प्रकाश शाह के करीबी लोगों के मुताबिक, वे कई वर्षों से जैन धर्म, ध्यान और आत्मिक शांति की ओर आकर्षित थे। उन्होंने जीवन की अस्थायी भौतिक उपलब्धियों की बजाय आध्यात्मिक मुक्ति को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे यह रुचि इतनी गहराई में उतर गई कि उन्होंने गृहस्थ जीवन, पद, प्रतिष्ठा और करोड़ों की संपत्ति को त्यागने का निर्णय ले लिया।

जैन साधु जीवन का मतलब

जैन धर्म में साधु जीवन का अर्थ है—

  • अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह (संपत्ति का त्याग)
  • मोह-माया से मुक्ति
  • ब्रह्मचर्य का पालन
  • अत्यंत सादा जीवन और उच्च विचार

प्रकाश शाह अब इन सभी सिद्धांतों पर चल रहे हैं। उनका लक्ष्य अब आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति है।

समाज में संदेश

इस प्रेरणादायक निर्णय ने लाखों लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। जब एक ऐसा व्यक्ति, जिसने जीवन में सबकुछ पा लिया— पैसा, पॉवर, सम्मान— वह कहता है कि “सच्चा सुख बाहर नहीं, अंदर है”, तो यह एक गहरा संदेश देता है।

जहां हम में से कई लोग 9 से 9 की नौकरी, प्रमोशन, गाड़ियों, विदेशी ट्रिप्स और ब्रांडेड चीजों की रेस में दौड़ रहे हैं, वहीं कोई व्यक्ति आत्मिक शांति को सबसे ऊपर मान रहा है।

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