माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे और मऊ सदर से समाजवादी पार्टी के विधायक अब्बास अंसारी की राजनीतिक मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान दिए गए एक विवादित बयान के चलते मऊ की सीजेएम कोर्ट ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई है। कोर्ट के इस फैसले के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता भी खतरे में पड़ गई है।
यह मामला उस समय का है जब अब्बास अंसारी ने एक चुनावी जनसभा में कहा था, “भैया (अखिलेश यादव) से बात हो गई है, सबका हिसाब लिया जाएगा।” इस बयान को अधिकारियों को धमकाने के रूप में देखा गया और मऊ कोतवाली के एक सब-इंस्पेक्टर ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153(A) (साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना) और 120(B) (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद चली लंबी कानूनी प्रक्रिया में कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई।
क्या अब्बास अंसारी की विधायकी जाएगी?
संविधान और चुनाव कानूनों के जानकारों के अनुसार, यदि किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो उसकी संसद या विधानसभा सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाले से वरिष्ठ वकील प्रशांत सिंह अटल ने बताया कि अब्बास अंसारी की विधायकी भी इसी आधार पर रद्द की जा सकती है।
उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति से अपराधीकरण हटाने के लिए यह एक जरूरी कदम है और ऐसे मामलों में न्यायिक सख्ती जरूरी है।
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समाजवादी पार्टी की छवि पर असर
अब्बास अंसारी का यह बयान केवल कानूनी नजरिए से नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी घातक साबित हुआ। और उनके बयान ने समाजवादी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है।
जनता अब नेताओं की जिम्मेदार बयानबाजी की अपेक्षा करती है। अब्बास का यह विवादित बयान उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की ओर भी इशारा करता है, जो पहले से ही अपराध और विवादों से जुड़ी रही है।
राजनीतिक भविष्य पर सवाल
इस सजा के बाद अब्बास अंसारी को अपनी राजनीतिक रणनीति में बड़ा बदलाव करना होगा। उनकी छवि पहले ही विवादों से जुड़ी रही है और अब इस सजा ने उनकी विश्वसनीयता को और कमजोर किया है।
जनता अब पारदर्शी, जवाबदेह और साफ-सुथरी राजनीति चाहती है। यदि अब्बास इस दिशा में बदलाव नहीं लाते, तो उनका राजनीतिक भविष्य भी खतरे में पड़ सकता है।
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