November 15, 2025

दिल्ली की तहज़ीब: अंजन, राकेश और मनीष का जादुई जश्न, पुरानी दिल्ली की रूह जागी!

दिल्ली – सिर्फ शहर नहीं, एक एहसास

दिल्ली सिर्फ भारत की राजधानी नहीं, बल्कि तहज़ीब, अदब, उर्दू की मिठास और अपनापन का जीवंत एहसास है। पुरानी दिल्ली की संकरी गलियाँ, चाय की खुशबू, जामा मस्जिद के आसपास की चहल-पहल, गली क़ासिम जान की चाट, हजरत निज़ामुद्दीन की दरगाह पर कव्वाली – यही वो तत्व हैं जो दिल्ली को दुनिया के किसी और शहर से अलग बनाते हैं। और अब, इस एहसास को मंच पर ज़िंदा कर रहे हैं तीन दिग्गज कलाकार – अंजन श्रीवास्तव, राकेश बेदी और मनीष। उनका शो ‘दिल्ली की तहज़ीब’ सिर्फ एक नाट्य प्रस्तुति नहीं, बल्कि पुरानी दिल्ली की आत्मा का पुनर्जन्म है। दर्शक हँसते हैं, भावुक होते हैं, और एक पल के लिए लगता है – वो 1950-60 के दशक की दिल्ली में पहुँच गए हैं।

अंजन श्रीवास्तव: सादगी में छुपी गहराई

‘वागले की दुनिया’ के वागले साहब यानी अंजन श्रीवास्तव अपने शांत, सुलझे और गहरे अंदाज़ में दर्शकों को दिल्ली की आत्मा से रू-ब-रू कराते हैं। वे कहते हैं, “दिल्ली को देखा नहीं जाता, इसे दिल से महसूस किया जाता है।” उनकी हर बात में एक पुरानी दिल्ली की सादगी झलकती है – वो चाँदनी चौक की रौनक, वो कनॉट प्लेस की शामें, वो दरियागंज की किताबों की महक। अंजन जी की आवाज़ में एक ठहराव है, जो सुनने वाले को सोचने पर मजबूर कर देता है – क्या हमने दिल्ली को सचमुच समझा है? उनकी प्रस्तुति में कोई बनावट नहीं, सिर्फ सच्चाई और संवेदना। वे दर्शकों को बताते हैं कि दिल्ली की तहज़ीब का मतलब है – हर धर्म, हर भाषा, हर इंसान का सम्मान।

राकेश बेदी: हँसी में लिपटी गर्माहट

‘ये जो है ज़िंदगी’ के हंसमुख चरित्र से मशहूर राकेश बेदी मंच पर आते ही हवा बदल देते हैं। उनकी मज़ेदार लेकिन दिल छू लेने वाली कहानियाँ पुरानी दिल्ली की गलियों से सीधे दिल तक पहुँचती हैं। वो बताते हैं – कैसे एक मुसलमान पड़ोसी हिंदू परिवार के बच्चे को रोज़ दूध पिलाता था, कैसे दीवाली पर पूरा मोहल्ला एक साथ पटाखे फोड़ता था। उनकी हर लाइन में अपनापन है, वो हँसाते हैं, लेकिन आँखें नम भी कर देते हैं। राकेश बेदी की खासियत है – वो कॉमेडी नहीं, दिल से दिल तक की बात करते हैं। उनकी कहानियों में दिल्ली का वो दौर जीवित हो उठता है, जब रिश्ते पैसे से नहीं, दिल से बनते थे।

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मनीष: उर्दू शायरी की जादूगरी

और फिर मंच संभालते हैं मनीष – जिनकी आवाज़ में उर्दू शेर ऐसे लगते हैं मानो कोई पुरानी मोहब्बत फिर से जाग उठी हो। ग़ालिब, मीर, दाग़ – उनकी ज़बाँ पर आकर जैसे नई ज़िंदगी पा जाते हैं। “दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है?” – ये शेर जब मनीष पढ़ते हैं, तो सभागार में सन्नाटा छा जाता है, फिर तालियाँ गूँज उठती हैं। उनकी हर अदा में नफ़ासत, हर लफ़्ज़ में गहराई। वे उर्दू को सिर्फ़ भाषा नहीं, इबादत बनाते हैं। मनीष की शायरी दिल्ली की रूह है – जो सदियों से प्यार, दर्द, और अदब की भाषा रही है।

तीनों का त्रिवेणी संगम: दिल्ली की रूह का पुनर्जन्म

अंजन की सादगी, राकेश की गर्मजोशी, और मनीष की soulful उर्दू – तीनों मिलकर एक ऐसा जादू रचते हैं जो शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। मंच पर पुरानी दिल्ली की गलियाँ बन जाती हैं, चाय की केतली खौलने लगती है, और उर्दू की मिठास हवा में घुल जाती है। दर्शक सिर्फ़ देखते नहीं, महसूस करते हैं – वो एहसास जो दिल्ली को दिल्ली बनाता है। ये शो कोई मनोरंजन नहीं, बल्कि एक यात्रा है – समय की, संस्कृति की, और आत्मा की।

क्यों देखें ये जश्न?

अगर आप उर्दू की मिठास, दिल्ली की तहज़ीब, और पुरानी दिल्ली की रूह को फिर से जीना चाहते हैं – तो ये शो आपके लिए है। ये सिर्फ़ एक प्रोग्राम नहीं, एक एहसास है। आने वाली पीढ़ी को बताने का मौक़ा – कि दिल्ली सिर्फ़ इमारतें नहीं, दिलों का शहर है। बुक करें अपना टिकट, और डूब जाएँ दिल्ली के इस नायाब जश्न में!

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