क्या वाकई यूपी सरकार बच्चों की पढ़ाई बंद करने जा रही है?या फिर ये एक बड़ा और ज़रूरी शिक्षा सुधार है?
अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं, तो आपने ये दावा ज़रूर देखा होगा कि “उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे हैं“। लेकिन क्या ये दावा सच है?आइए जानते हैं सच्चाई साफ-साफ, तथ्य के साथ, बिना किसी सियासी चश्मे के
क्या कहती है सरकार?
यूपी सरकार ने हाल ही में ऐलान किया है कि ऐसे सरकारी स्कूल, जहां छात्र संख्या 50 से कम है, उन्हें पास के बड़े स्कूलों में मर्ज किया जाएगा।बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने साफ कहा है कि कोई भी स्कूल पूरी तरह बंद नहीं होगा। शिक्षकों की छंटनी नहीं होगी। सिर्फ 1 किलोमीटर के दायरे में स्कूलों का मर्जर किया जाएगा। यानि, छोटे स्कूल बंद नहीं किए जा रहे, बल्कि बेहतर सुविधा और संसाधन जुटाने के लिए उन्हें पास के स्कूलों से जोड़ा जाएगा।
शिक्षकों की नौकरी का क्या होगा?
इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर शिक्षकों की छंटनी की खबरें भी चल रही थीं। जिन्हें शिक्षा मंत्री ने गलत बताया है। सरकार का दावा है । एक भी शिक्षक की नौकरी नहीं जाएगी। सभी को नई व्यवस्था में समायोजित किया जाएगा।
बच्चों पर क्या असर पड़ेगा?
सरकार के मुताबिक़ इस फैसले से छोटे-छोटे स्कूलों की जगह अब ज्यादा बच्चे एक जगह पढ़ेंगे क्लासरूम, कंप्यूटर, लाइब्रेरी, साफ़ टॉयलेट जैसी सुविधाएं बेहतर होंगी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा शिक्षकों की उपलब्धता और निगरानी बेहतर होगी
प्री-प्राइमरी बच्चों के लिए भी नई पहल
जहां छात्र संख्या कम है और स्कूलों को मर्ज किया जा रहा है, उन खाली स्कूल बिल्डिंग्स में अब बाल वाटिका (प्री-प्राइमरी) स्कूल शुरू होंगे 3 से 6 साल तक के बच्चों को शुरुआती शिक्षा दी जाएगी यानि गांवों में आंगनबाड़ी और स्कूल का फर्क धीरे-धीरे खत्म किया जाएगा।
लेकिन असली सवाल ज़मीन पर लागू कैसे होगा?
कागज़ पर ये योजना सही लग सकती है, लेकिन क्या बच्चों को आने-जाने में परेशानी होगीक्या शिक्षकों को नई जगह पर ठीक से समायोजित किया जाएगा?क्या सरकार हर बच्चे की पढ़ाई की जिम्मेदारी निभा पाएगी?इन सवालों का जवाब तब ही मिलेगा जब योजना जमीन पर पूरी पारदर्शिता से लागू होगी।
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