उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आधारित फिल्म “अजेय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अ योगी” इन दिनों कानूनी विवादों और सेंसर बोर्ड की सख्ती के चलते सुर्खियों में है। अब इस बहुचर्चित फिल्म को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने खुद हस्तक्षेप करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि वह फिल्म को खुद देखेगी और उसके बाद ही कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा।यह मामला अब केवल सिनेमाई अभिव्यक्ति की आज़ादी का नहीं, बल्कि सेंसर बोर्ड की प्रक्रिया और निष्पक्षता पर भी बड़ा सवाल बन चुका है।
विवाद की शुरुआत कैसे हुई?
फिल्म का निर्माण सम्राट सिनेमेटिक प्रोडक्शन हाउस द्वारा किया गया है। जब फिल्म सेंसर सर्टिफिकेशन के लिए CBFC (Central Board of Film Certification) के पास भेजी गई, तो बिना फिल्म देखे ही सर्टिफिकेशन एप्लिकेशन खारिज कर दी गई। यह फैसला निर्माताओं को चौंकाने वाला लगा।इसके बाद फिल्म निर्माताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां कोर्ट ने सेंसर बोर्ड को निर्देश दिया कि फिल्म को देखें और फिर निष्पक्ष निर्णय दें।
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सेंसर बोर्ड की आपत्तियाँ और कोर्ट की नाराज़गी
CBFC की एग्ज़ामिनेशन कमिटी ने फिल्म को देखा, लेकिन सर्टिफिकेट देने से इंकार कर दिया। बिना किसी ठोस और स्पष्ट कारण के इस फैसले को फिर से कोर्ट में चुनौती दी गई।बाद में CBFC ने फिल्म के 29 डायलॉग्स को आपत्तिजनक बताते हुए उनका हवाला दिया। हालांकि, इन डायलॉग्स को लेकर न कोई विस्तृत स्पष्टीकरण दिया गया और न ही कोई समाधान सुझाया गया।निर्माताओं ने इस रवैये को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया।
रिवाइजिंग कमिटी की भूमिका
CBFC की रिवाइजिंग कमिटी ने फिल्म को दोबारा देखा और 29 में से 8 आपत्तियों को हटा दिया, लेकिन 21 डायलॉग्स को आधार बनाकर फिर से सर्टिफिकेशन रिजेक्ट कर दिया। यह कदम भी निर्माताओं को अनुचित लगा, क्योंकि उन्हें अब भी स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए।
बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला अब फिल्म हम देखेंगे
मामले की गंभीरता को देखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा अब हम खुद फिल्म देखेंगे, और उसी आधार पर फैसला देंगे।कोर्ट इस सप्ताह के अंत में फिल्म देखेगा और सोमवार को अपना अंतिम निर्णय सुनाएगा । यह फैसला भारत में फिल्म सेंसरशिप और रचनात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक मिसाल साबित हो सकता है।
अब निगाहें सोमवार पर टिकी हैं
अब सभी की नजरें सोमवार को आने वाले फैसले पर हैं । क्या फिल्म को रिलीज़ की अनुमति मिलेगी?या सेंसर बोर्ड की आपत्तियों के चलते यह मामला और उलझ जाएगाक्या यह मामला फिल्मकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम संवेदनशीलता के मुद्दे में तब्दील होगा’अजेय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अ योगी’ सिर्फ एक बायोपिक नहीं, बल्कि यह मामला अब रचनात्मक अभिव्यक्ति और सेंसरशिप के संतुलन का भी बन चुका है।बॉम्बे हाईकोर्ट का यह कदम महत्वपूर्ण है । क्योंकि यह पहली बार है जब कोर्ट खुद फिल्म देखने का निर्णय ले रहा है, जो भारतीय सिनेमा और कानून के बीच के रिश्ते को नई दिशा दे सकता है।
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