October 15, 2025

जीएसटी सुधार 2025: राज्यों को फायदा, केंद्र को नुकसान

भारत में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत 1 जुलाई 2017 को हुई थी, और तब से यह देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़े सुधारों में से एक बन गया है। 3 सितंबर 2025 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में जीएसटी दरों में बड़े पैमाने पर कटौती का फैसला लिया गया। यह नया नियम 22 सितंबर 2025 से लागू होगा। इस फैसले से जहां राज्यों को वित्तीय लाभ होगा, वहीं केंद्र सरकार को सालाना लगभग 48,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। आइए, इस सुधार के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।

राज्यों को कैसे होगा फायदा?

जीएसटी काउंसिल के इस फैसले से जीएसटी दरों में कमी आई है, लेकिन इसका सबसे बड़ा लाभ राज्यों को होगा। पहले मोटर वाहनों पर लगने वाला कंपनसेशन सेस पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास जाता था, और राज्यों को इसमें कोई हिस्सेदारी नहीं मिलती थी। अब इस सेस को खत्म कर दिया गया है। इसके बदले या तो उत्पादों की कीमतें कम की गई हैं या उन पर 40% की दर से जीएसटी लगाया गया है। इस नई व्यवस्था में 40% जीएसटी का आधा हिस्सा यानी 20% केंद्र को और 20% राज्यों को मिलेगा।

एसबीआई के एक रिसर्च पेपर के अनुसार, जीएसटी संग्रह का आधा हिस्सा पहले की तरह केंद्र और राज्यों के बीच बराबर बंटेगा। इसके बाद केंद्र के हिस्से में आई राशि का 41% हिस्सा राज्यों को वापस दिया जाएगा। उदाहरण के लिए, यदि किसी राज्य से 100 रुपये का जीएसटी संग्रह होता है, तो उस राज्य को लगभग 70.5 रुपये प्राप्त होंगे। इस तरह, राज्य नेट गेनर बनेंगे।

राज्यों को मिलेगा 14.1 लाख करोड़ रुपये

रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 में राज्यों को स्टेट जीएसटी (एसजीएसटी) के रूप में लगभग 10 लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा, डिवॉल्यूशन के तहत 4.1 लाख करोड़ रुपये और प्राप्त होंगे। कुल मिलाकर, सभी राज्यों को जीएसटी से 14.1 लाख करोड़ रुपये की हिस्सेदारी मिलेगी। खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को इस व्यवस्था का ज्यादा फायदा होगा, क्योंकि इन राज्यों में उपभोग का स्तर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है।

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केंद्र सरकार को कितना नुकसान?

केंद्रीय वित्त मंत्रालय के रेवेन्यू सेक्रेटरी अविनाश श्रीवास्तव के अनुसार, जीएसटी दरों में रेशनलाइजेशन के कारण केंद्र सरकार को सालाना लगभग 48,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। यह अनुमान वित्त वर्ष 2023-24 के उपभोग आंकड़ों के आधार पर लगाया गया है। हालांकि, यदि इस साल उपभोग पैटर्न में बदलाव होता है, तो नुकसान की राशि में भी बदलाव हो सकता है।

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