नेपाल की राजनीति में एक नया इतिहास रचा गया है। सुशीला कार्की, जो देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं, अब नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं। यह नियुक्ति राजनीतिक और सामाजिक संकट के समय आई है और इसे देश में स्थिरता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
शपथ ग्रहण और राष्ट्रव्यापी उम्मीदें
राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने सुशीला कार्की को शुक्रवार रात शपथ दिलाई। यह कोई सामान्य नियुक्ति नहीं थी। जनता ने लंबे समय से एक ईमानदार, गैर-राजनीतिक और भरोसेमंद चेहरा चाहा था जो व्यवस्था को संभाल सके। भारत ने इस अंतरिम सरकार का स्वागत किया और कहा कि नेपाल के साथ विकास और भाईचारे के लिए सहयोग जारी रहेगा।
कार्की की सरकार की रूपरेखा
फिलहाल कार्की की कैबिनेट में तीन लोग हैं, जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर बढ़ाया जाएगा। सरकार दो अहम आयोग बनाएगी। पहला, न्यायिक आयोग, जो हालिया हिंसा की जांच करेगा। दूसरा, भ्रष्टाचार निवारक आयोग, जो प्रशासन को पारदर्शी बनाएगा। यह कदम लोकतंत्र और शासन में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
हालात और पृष्ठभूमि
नेपाल में हाल ही में हुए प्रदर्शनों ने पूरे देश को झकझोर दिया। इन प्रदर्शनों में करीब 25 अरब नेपाली रुपये का नुकसान हुआ और 51 लोगों की जान गई, जिनमें एक भारतीय महिला भी शामिल थी। इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया कि युवा पीढ़ी की आवाज़ अब सत्ता के लिए अनदेखी नहीं की जा सकती।
युवा पीढ़ी की भूमिका
जेन-जी यानी युवा पीढ़ी की मांग और दबाव ने सुशीला कार्की की नियुक्ति को संभव बनाया। युवा अब लोकतंत्र में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और वे इसे अपनी जीत मान रहे हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर संदेशों की बाढ़ आ रही है कि देश अब जिम्मेदारी, प्यार और स्नेह से चलेगा।
नेपाल का लोकतंत्र मोड़ पर
यह बदलाव नेपाल के लोकतंत्र के लिए एक मोड़ साबित हो सकता है। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि यह नियुक्ति स्थायी सुधार लाएगी या नहीं। लेकिन एक बात तय है जनता की आवाज़ अब सत्ता से बड़ी हो गई है
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