नेपाल सरकार ने 17 सितंबर को राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित किया। यह दिन हाल ही में हुए जनरेशन ज़ेड विरोध प्रदर्शनों में मारे गए लोगों की याद में मनाया गया। इस मौके पर नेपाल में सभी सरकारी दफ्तर, स्कूल और कॉलेज बंद रखे गए। यहां तक कि विदेशों में मौजूद नेपाल के दूतावास भी इस दिन बंद रहे। पूरे देशभर में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया, ताकि प्रदर्शन में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि दी जा सके।

जनरेशन ज़ेड आंदोलन और हिंसा
8 और 9 सितंबर को नेपाल में जनरेशन ज़ेड द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। शुरुआत में यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, लेकिन धीरे-धीरे इसमें हिंसा बढ़ने लगी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इन घटनाओं में 72 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें तीन पुलिसकर्मी भी शामिल थे। हिंसा के दौरान कई सरकारी इमारतों और राजनीतिक नेताओं के घरों को आग के हवाले कर दिया गया। राजधानी काठमांडू समेत अन्य शहरों में हालात बेहद तनावपूर्ण बने रहे।
राजनीतिक संकट और सरकार में बदलाव
इन प्रदर्शनों और हिंसक घटनाओं के बाद नेपाल की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भारी दबाव के चलते अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने पदभार संभाला और घोषणा की कि जिन लोगों की मौत हुई है, उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाएगा। यह कदम सरकार की ओर से जनता के गुस्से को शांत करने और आंदोलनकारियों को सम्मान देने का प्रयास माना जा रहा है।
जनता का गुस्सा और बदलाव की उम्मीद
जनरेशन ज़ेड का यह आंदोलन नेपाल में युवाओं की आवाज़ को उजागर करता है। देश की युवा आबादी रोजगार, शिक्षा और अवसरों की कमी से लंबे समय से नाराज़ है। प्रदर्शन के दौरान जो हिंसा और नुकसान हुआ, उसने यह साफ कर दिया कि जनता अब तत्काल बदलाव चाहती है। लोगों का कहना है कि यदि सरकार सही दिशा में कदम नहीं उठाती, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।

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