परिचय: H-1B वीजा विवाद में मस्क का एंट्री, ट्रंप प्रशासन पर हमला
अमेरिका में एक बार फिर H-1B वीजा को लेकर राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। इस बार मोर्चा संभाल रहे हैं टेस्ला और स्पेसएक्स के संस्थापक एलन मस्क, जिनकी एक ट्वीट पूरी इंडस्ट्री को हिला देती है। मस्क ने साफ शब्दों में कहा, “अगर जरूरत पड़ी, तो ऐसी जंग छेड़ूंगा जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते!” ट्रंप प्रशासन का प्रस्तावित कदम—H-1B वीजा पर भारी फीस लगाना—न केवल अमेरिकी टेक सेक्टर को झकझोर रहा है, बल्कि सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स। मस्क का यह बयान न सिर्फ व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है, बल्कि अमेरिकी नवाचार की रक्षा का आह्वान भी है। आइए, इस विवाद की परतें खोलें और समझें कि क्यों H-1B वीजा अमेरिकी अर्थव्यवस्था की धमक है।
H-1B वीजा का महत्व: विदेशी टैलेंट की अमेरिकी रीढ़
H-1B वीजा क्या है? यह एक अस्थायी वर्क परमिट है जो अमेरिकी कंपनियों को विदेशों से उच्च कुशल श्रमिकों को हायर करने की अनुमति देता है। खासकर टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और साइंस फील्ड्स में यह वीजा गेम-चेंजर साबित हुआ है। हर साल करीब 85,000 वीजा जारी होते हैं, जिनमें से 70% से ज्यादा भारतीयों को मिलते हैं। मस्क खुद 1995 में दक्षिण अफ्रीका से H-1B वीजा पर अमेरिका आए थे और Zip2 जैसी कंपनी बनाकर अरबपति बने। उनका मानना है कि यह सिस्टम अमेरिका को चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों से आगे रखता है। अमेज़न, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और भारतीय फर्म्स जैसे इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो इसी पर निर्भर हैं। बिना H-1B के, अमेरिकी स्टार्टअप्स टैलेंट की कमी से जूझेंगे, जो इनोवेशन को ठप कर देगा। मस्क की कंपनियां स्पेसएक्स और टेस्ला में हजारों H-1B होल्डर्स काम करते हैं, जो रॉकेट लॉन्च से लेकर इलेक्ट्रिक कारों तक सब संभालते हैं।
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ट्रंप का प्रस्ताव: फीस का बोझ, भारतीयों पर सबसे ज्यादा असर
ट्रंप प्रशासन का नया प्लान H-1B वीजा पर 4,000 डॉलर से लेकर 10,000 डॉलर तक की अतिरिक्त फीस लगाने का है। इसका मकसद अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता देना बताया जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञ इसे ‘अमेरिका फर्स्ट’ की आड़ में एंटी-इमिग्रेंट पॉलिसी मानते हैं। इससे छोटी कंपनियां और स्टार्टअप्स प्रभावित होंगी, क्योंकि फीस का बोझ स्पॉन्सर कंपनियों पर पड़ेगा। भारतीय आईटी वर्कर्स, जो अमेरिका में 60% H-1B वीजा लेते हैं, सबसे ज्यादा नुकसान झेलेंगे। 2023 में ही 3 लाख से ज्यादा भारतीय H-1B पर थे, जो सिलिकॉन वैली की अर्थव्यवस्था को 50 बिलियन डॉलर का योगदान देते हैं। मस्क ने इसे ‘बेवकूफी’ करार दिया, कहा कि इससे टैलेंट बाहर चला जाएगा—कनाडा या यूरोप में। उनका तर्क साफ है: अमेरिका का सपना विदेशी इनोवेटर्स पर टिका है, इसे तोड़ना आत्मघाती होगा।
मस्क के सुझाव: सुधार हां, तोड़फोड़ नहीं
मस्क सुधार के पक्षधर हैं, लेकिन सिस्टम को ध्वस्त करने के खिलाफ। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि वीजा होल्डर्स की न्यूनतम सैलरी बढ़ाई जाए—जैसे 1.5 लाख डॉलर सालाना—ताकि अमेरिकी वर्कर्स को फायदा हो। साथ ही, रिन्यूअल फीस लगाने का सुझाव दिया, लेकिन टॉप टैलेंट को रोकने से मना किया। “H-1B अमेरिकी टेक इंडस्ट्री की रीढ़ है,” उन्होंने जोर देकर कहा। मस्क का इतिहास देखें तो वे हमेशा बोल्ड स्टैंड लेते हैं—टेस्ला के यूनियनाइजेशन से लेकर ट्विटर खरीद तक। उनकी चेतावनी हल्की नहीं; अगर ट्रंप आगे बढ़े, तो लॉबिंग, पेटिशन या कोर्ट बैटल की उम्मीद करें। टेक लीडर्स जैसे सत्य नडेला और सुंदर पिचाई भी समर्थन में उतर चुके हैं।
अमेरिका का भविष्य दांव पर, मस्क की जंग तय
क्या अमेरिका अपने ही इनोवेशन इंजन को पीछे धकेल रहा है? हां, अगर H-1B को कमजोर किया गया। यह विवाद सिर्फ वीजा का नहीं, बल्कि ग्लोबल टैलेंट वॉर का है। मस्क की चेतावनी—”मैं जंग छेड़ूंगा”—को हल्के में न लें, क्योंकि जब वे बोलते हैं, दुनिया सुनती है। ट्रंप प्रशासन को सोचना होगा: क्या ‘अमेरिका फर्स्ट’ का मतलब टैलेंट को बाहर करना है? भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए यह चिंता का विषय है, लेकिन मस्क जैसे समर्थकों से उम्मीद बंधती है। आने वाले महीनों में वाशिंगटन में बहस तेज होगी, और परिणाम अमेरिकी टेक का भविष्य तय करेंगे। रहें अपडेटेड, क्योंकि यह जंग अभी शुरू हुई है!
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