पंजाब में धान की कटाई शुरू होते ही पराली जलाने के मामले एक बार फिर से सामने आने लगे हैं। राज्य में अब तक 90 मामले पराली जलाने के दर्ज किए जा चुके हैं। रविवार को ही प्रदेश में 8 नए मामले सामने आए। सबसे अधिक 51 मामले अमृतसर जिले में रिपोर्ट किए गए।
इन मामलों में 47 मामलों में 2,25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। वहीं, 49 मामलों में BNS के सेक्शन 223 के तहत FIR दर्ज की गई है। इसके अलावा, 32 मामलों में किसानों के जमीन रिकॉर्ड में रेड एंट्री की गई है।
रेड एंट्री के बाद किसान अपनी जमीन न तो बेच सकते हैं और न ही उस पर लोन ले सकते हैं। यह एक सख्त कदम किसानों को पराली जलाने से रोकने और प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए उठाया गया है।
पंजाब में जागरूकता अभियान
राज्य सरकार और विभिन्न जिलों की प्रशासनिक टीम ने पराली जलाने के ‘हॉटस्पॉट’ क्षेत्रों में किसानों को जागरूक करने के लिए गहन अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य किसानों को समझाना है कि पराली जलाना न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि इसके गंभीर कानूनी और आर्थिक परिणाम भी हो सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अक्टूबर और नवंबर में धान की कटाई के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। पंजाब और हरियाणा से आने वाली पराली की धुएँ की वजह से वायु गुणवत्ता काफी प्रभावित होती है।
किसान क्यों जलाते हैं पराली?
ध्यान देने वाली बात यह है कि किसानों के पास धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच बहुत कम समय होता है। इस कारण से कुछ किसान अगली फसल के लिए अपने खेत जल्दी साफ करने हेतु पराली को जलाते हैं। यह प्रक्रिया खेत में जल्दी तैयारी करने का एक तरीका बन गई है।
हालांकि, यह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। पराली जलाने से हवा में PM2.5 और PM10 कण बढ़ जाते हैं, जिससे दिल और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
बीते सालों का डेटा
साल 2024 में पंजाब में 10,909 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गई थीं। वहीं, साल 2023 में यह संख्या 36,663 थी। इसका मतलब है कि पिछले वर्ष के मुकाबले पराली जलाने की घटनाओं में लगभग 70% की कमी आई।
हालांकि, यह कमी सकारात्मक संकेत है, लेकिन अभी भी पराली जलाने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। यही कारण है कि प्रशासन द्वारा सख्त कदम उठाए जा रहे हैं और जागरूकता अभियान तेज किया गया है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर
पराली जलाने से हवा में जहरीली गैसें फैलती हैं। यह न केवल दिल और फेफड़ों की बीमारियों का कारण बनती हैं, बल्कि मौसम और कृषि पर भी नकारात्मक असर डालती हैं। दिल्ली और अन्य शहरों में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के पीछे अक्सर पंजाब और हरियाणा से आने वाला धुआँ जिम्मेदार माना जाता है।
राज्य सरकार और केंद्रीय एजेंसियां मिलकर किसानों को पराली प्रबंधन के विकल्प सुझा रही हैं, जैसे कि पराली को खाद या बायोगैस में बदलना, ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे और किसानों की फसल का समय भी बर्बाद न हो।
पंजाब में पराली जलाने के 90 मामलों और जुर्माना/ FIR की कार्रवाई यह संकेत देती है कि सरकार इस समस्या को गंभीरता से ले रही है। किसानों की जागरूकता और वैकल्पिक उपायों को अपनाने से न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि किसानों को भी कानूनी और आर्थिक समस्याओं से बचाया जा सकेगा।
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