लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किए जाने पर कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कड़ा विरोध दर्ज किया। उन्होंने इसे “लेजिस्लेचर को बुलडोज़ करने” जैसा बताया और विधेयक में सदस्यों के संशोधन प्रस्तावों को नज़रअंदाज करने का आरोप लगाया। इस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि सरकारी और गैर-सरकारी संशोधनों को समान रूप से समय दिया गया है, और किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है।
विधेयक पर बहस और विवाद
आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने इस विधेयक पर पॉइंट ऑफ ऑर्डर उठाते हुए कहा कि संसद मूल विधेयक पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं है, बल्कि यह जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) की रिपोर्ट के आधार पर नया प्रस्ताव है। उन्होंने इसे एक “तकनीकी मुद्दा” करार दिया और कहा कि संसद को इसे नियम 81 को सस्पेंड किए बिना चर्चा करने का अधिकार नहीं है। उनका कहना था कि नए ड्राफ्ट में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जो व्यापक चर्चा की मांग करते हैं।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
यह विधेयक वक्फ संपत्तियों से जुड़े कुछ विवादों को हल करने और प्रशासनिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने का प्रयास करता है। इसमें कुछ प्रमुख प्रावधान शामिल हैं:
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- वक्फ बोर्ड की शक्तियों में संशोधन: नए विधेयक के तहत वक्फ बोर्ड के अधिकारों और दायित्वों को पुनर्परिभाषित किया गया है।
- वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा: इसमें वक्फ संपत्तियों को अनधिकृत कब्जे से बचाने के लिए कठोर प्रावधान जोड़े गए हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: नए कानून में वक्फ बोर्ड और संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही को बढ़ाने के उपाय किए गए हैं।
- न्यायिक प्रक्रिया का सरलीकरण: वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों के समाधान के लिए न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाने का प्रावधान किया गया है।
विपक्ष की आपत्तियाँ
विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस और आरएसपी के नेताओं ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर गंभीर आपत्तियाँ जताई हैं। उनका मानना है कि:
- जनता और संबंधित पक्षों से पर्याप्त परामर्श नहीं किया गया: विपक्ष का आरोप है कि इस विधेयक को बिना पर्याप्त चर्चा के पारित करने की कोशिश की जा रही है।
- जेपीसी की सिफारिशों को पूरी तरह लागू नहीं किया गया: विपक्षी सांसदों ने दावा किया कि संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट में दिए गए कई सुझावों को नजरअंदाज कर दिया गया है।
- संसद की प्रक्रिया का उल्लंघन: कुछ सांसदों ने यह भी तर्क दिया कि नियम 81 को सस्पेंड किए बिना नए प्रावधानों पर चर्चा करना संसदीय नियमों का उल्लंघन है।
- नए प्रावधानों में अस्पष्टता: विधेयक के कुछ प्रावधानों को अस्पष्ट और विवादास्पद बताया गया है, जिससे भविष्य में कानूनी चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
सरकार का पक्ष
सरकार की ओर से इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा गया कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने और प्रशासनिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए आवश्यक है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि सरकारी और गैर-सरकारी संशोधनों को समान अवसर दिया गया है और किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया है।
आगे की राह
वक्फ संशोधन विधेयक पर आगे क्या निर्णय लिया जाएगा, यह संसद में होने वाली आगामी चर्चाओं पर निर्भर करेगा। यदि विपक्ष की माँगों को ध्यान में रखते हुए इस पर विस्तृत चर्चा की जाती है, तो संभव है कि इसमें कुछ और संशोधन किए जाएँ।
वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर संसद में विरोध और समर्थन दोनों ही देखने को मिल रहे हैं। जहाँ सरकार इसे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने वाला कदम मान रही है, वहीं विपक्ष इसे जल्दबाज़ी में लागू किया गया विधेयक बता रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विधेयक पर संसद में क्या फैसला लिया जाता है और यह वक्फ संपत्तियों के प्रशासन पर क्या प्रभाव डालता है।
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