भारत की सुप्रीम कोर्ट जहाँ हर शब्द और हर बहस कानून के इतिहास में दर्ज होती है, वहाँ सोमवार को कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे देश को हिला दिया। कोर्ट नंबर 1 में कार्यवाही अचानक हंगामेदार हो गई, जब वरिष्ठ वकील राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंक दिया। हाँ, आपने सही सुना। कोर्ट के अंदर देश के सबसे बड़े जज पर जूता फेंकने की कोशिश हुई। शुक्र है कि उन्हें कोई चोट नहीं आई, लेकिन यह घटना भारतीय न्यायपालिका के इतिहास पर काला धब्बा बन गई।
घटना की पृष्ठभूमि
71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने जूता फेंकते हुए चिल्लाया कि “भारत सनातन धर्म का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगा।” मामला उस सुनवाई से जुड़ा था जिसमें मध्य प्रदेश के खजुराहो परिसर की क्षतिग्रस्त विष्णु प्रतिमा पर टिप्पणी को लेकर विवाद हुआ था। कुछ हफ्ते पहले CJI गवई की उस टिप्पणी ने कई कानूनी विशेषज्ञों और नागरिकों के बीच बहस छेड़ दी थी।
सुरक्षा और वकील की गिरफ्तारी
सुरक्षा ने तुरंत राकेश किशोर को पकड़ लिया। उनके पास सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, शाहदरा बार एसोसिएशन और दिल्ली बार काउंसिल के सदस्यता कार्ड बरामद हुए। उन्हें हिरासत में लिया गया, लेकिन बाद में छोड़ दिया गया। हालांकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस घटना की गंभीरता को देखते हुए इंटरिम सस्पेंशन का आदेश जारी किया। अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने इसे अदालत की गरिमा और कानून का उल्लंघन बताया।
देश और न्यायपालिका पर असर
इस घटना ने देशभर में बहस को तेज़ कर दिया। सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसी घटनाएँ लोकतंत्र की मर्यादा को चोट पहुँचा रही हैं? क्या गुस्सा और आस्था कानून के दायरे से ऊपर हो सकती हैं? न्यायपालिका की सुरक्षा और सम्मान पर यह घटना गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
मुख्य न्यायाधीश का बयान
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने बड़े सधे अंदाज़ में कहा कि मैं ऐसी घटनाओं से प्रभावित होने वाला आखिरी व्यक्ति हूँ।” उनका यह बयान अदालत की गरिमा और आत्म-नियंत्रण की भावना को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर हमला, चाहे असफल ही क्यों न हो, लोकतंत्र की नींव और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाता है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि कानून का पालन और न्यायपालिका का सम्मान हर नागरिक का कर्तव्य है। देशभर में न्यायपालिका की सुरक्षा और सम्मान पर चर्चा अब और भी तेज़ हो गई है।

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