तमिल सिनेमा के सुपरस्टार विजय अब सिर्फ पर्दे पर हीरो नहीं हैं असल ज़िंदगी में भी एक नया किरदार निभा रहे हैं: राजनीति का खिलाड़ी। लेकिन अफ़सोस, ये रोल सिर्फ भाषणों और वादों से नहीं चलता यहां रिस्क असली होता है।रविवार रात, चेन्नई पुलिस को एक कॉल आता है विजय के नीलांकरई स्थित घर में बम होने की सूचना मिलती है।बम स्क्वॉड दौड़ा, पुलिस पहुंची, तलाशी हुई — लेकिन कुछ नहीं मिला। न बम, न सुराग पर सिस्टम की असलियत जरूर सामने आ गई।
धमकी के साथ ही विजय की रैली में मौत का मंजर
उधर, विजय की पार्टी TVK (तमिलगाम नागरिक काची) की पहली बड़ी रैली हो रही थी। परमिशन थी 10,000 लोगों की, लेकिन पहुंचे 30,000 से ज़्यादा नतीजा?भयावह भगदड़ अब तक 41 मौतें हो चुकी हैं 18 महिलाएं10 मासूम बच्चेऔर 13 वो लोग, जो शायद सिर्फ एक झलक पाने आए थे, वोट देने नहीं। ये सवाल भी दिल को चीर जाता है कि क्या भीड़ सिर्फ वोट है? क्या मौत सिर्फ आंकड़ा है?
राजनीति की पहली सीख भीड़ नहीं, ज़िम्मेदारी संभालो
Vijay की पार्टी ने इसे “साजिश” बताया है और मद्रास हाईकोर्ट में केस भी दाखिल कर दिया है।लेकिन सच ये है कि अगर कोई अभिनेता नेता बनता है, तो उसे सिर्फ स्टेज पर खड़ा होकर मुस्कुराना नहीं आता उसे भीड़ की ज़िम्मेदारी भी उठानी होती है।आज की राजनीति में स्टारडम एंट्री टिकट हो सकता है, लेकिन सेफ़्टी और मैनेजमेंट ही असली कामयाबी है।
क्या राजनीति अब जानलेवा खेल बन गई है?
इस घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल उठता है क्या राजनीति में आना अब इतना खतरनाक हो गया है कि पहले स्टारडम चाहिए, फिर सिक्योरिटी?या फिर यह वही पुराना लोकतांत्रिक खेल है जहां जनता सिर्फ भीड़ होती है,भीड़ सिर्फ गिनती होती है,और मौतें सिर्फ आंकड़े।
सिस्टम फेल है और जनता फिर भी लाइन में है
बम की धमकी भले फेक निकली लेकिन ये सवाल असली है क्या हमारी सुरक्षा एजेंसियां इतनी ही कमजोर हैं कि किसी भी कॉल पर हड़बड़ी मच जाए?और रैली में मरे लोगों की जिम्मेदारी कौन लेगा?पार्टी? सरकार? पुलिस?या फिर हमेशा की तरह कोई नहीं?
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