नई दिल्ली — कर्नाटक के बहुचर्चित धर्मस्थल सामूहिक अंत्येष्टि मामले में अब देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया गया है। यह याचिका धर्मस्थल मंदिर संस्थान के सचिव हर्षेंद्र कुमार डी द्वारा दायर की गई है, जिसमें उन्होंने मीडिया कवरेज पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दी है।
क्या है पूरा मामला?
इस संवेदनशील केस में शुरुआत में निचली अदालत ने एक आदेश जारी कर मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को इस मामले में रिपोर्टिंग करने से प्रतिबंधित कर दिया था। इस आदेश के दायरे में यूट्यूब चैनल ‘कुडले रैम्पेज’ सहित 338 व्यक्तियों और संस्थाओं को शामिल किया गया था।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
इस आदेश के खिलाफ जब याचिका कर्नाटक हाईकोर्ट में पहुंची, तो न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने निचली अदालत के फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असंवैधानिक हमला” बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने कहा किजनता के जानने का अधिकार सीमित नहीं किया जा सकता, खासकर ऐसे मामलों में जहाँ कथित संस्थागत विफलताएँ और संभावित आपराधिक गड़बड़ियाँ सामने आ रही हों।”
मीडिया की भूमिका और सार्वजनिक जवाबदेही
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निचली अदालत का यह एकतरफा आदेश मीडिया को डराने वाला था और यह पब्लिक अकाउंटेबिलिटी, यानी सार्वजनिक जवाबदेही के मूल सिद्धांतों पर हमला करता है।
अब मामला सुप्रीम कोर्ट में
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की तत्काल सुनवाई के लिए सहमति जताई थी और इसे शुक्रवार (9 अगस्त) को सूचीबद्ध किया जाना था, लेकिन खबर लिखे जाने तक यह केस सुनवाई सूची में शामिल नहीं हुआ है।याचिकाकर्ताओं के वकील ए. वेलन ने हाईकोर्ट के फैसले को लेकर कहा यह फैसला एक मजबूत संदेश है कि कानून का इस्तेमाल संस्थानों को जांच से बचाने के लिए नहीं किया जा सकता। यह मानहानि का नहीं, पारदर्शिता का मामला है।
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