भारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत एक बार फिर अपने बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही जल विवाद नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा, “पूरे पाकिस्तान का पानी रोकना गलत है।”
उनके इस बयान से सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई है और राजनीतिक गलियारों में भी हलचल है। कई लोग उनके इस बयान को कृषि हित और मानवता की दृष्टि से सही बता रहे हैं, वहीं कुछ इसे राष्ट्रहित के खिलाफ बता रहे हैं।
क्या कहा नरेश टिकैत ने?
एक किसान पंचायत को संबोधित करते हुए नरेश टिकैत ने कहा:
“पाकिस्तान से हमारी दुश्मनी ठीक है, लेकिन पानी रोकना पूरी इंसानियत के खिलाफ है। किसान वहां भी हैं, जैसे यहां हैं। हमें सरकार से कहना चाहिए कि जो उचित जल बंटवारा समझौते में है, वही होना चाहिए। पूरा पानी रोकना गलत है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि पानी का मुद्दा राजनीति से नहीं, इंसानियत से जुड़ा है, और दोनों देशों के किसानों को इसका नुकसान नहीं झेलना चाहिए।
पृष्ठभूमि – भारत-पाकिस्तान जल विवाद क्या है?
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (1960) के तहत छह नदियों – सिंधु, चिनाब, झेलम, रावी, ब्यास और सतलुज – का जल बंटवारा हुआ था। इसमें पूर्वी नदियों (ब्यास, सतलुज, रावी) पर भारत का अधिकार है और पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पाकिस्तान को प्राथमिकता दी गई थी।
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हाल के वर्षों में जब पाकिस्तान लगातार भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहा, तब भारत में यह मांग उठने लगी कि “पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को रोका जाए।” सरकार की ओर से भी यह कहा गया कि “एक-एक बूंद पानी रोका जाएगा और उसे भारत के हिस्से के राज्यों में मोड़ा जाएगा।”
टिकैत के बयान के मायने
नरेश टिकैत का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत में राष्ट्रवाद और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे राजनीतिक और सामाजिक विमर्श के केंद्र में हैं। ऐसे में उनका यह कहना कि “पानी रोकना इंसानियत के खिलाफ है,” कुछ वर्गों को असहज कर सकता है।
हालांकि, किसान संगठनों और विशेषज्ञों का एक तबका यह मानता है कि पानी को हथियार बनाना केवल अस्थायी दबाव बना सकता है, लेकिन इसका स्थायी समाधान नहीं है।
नरेश टिकैत का यह बयान किसानों की वैश्विक एकता और मानवता की सोच को दर्शाता है – जहां राजनीति से ऊपर रोटी-पानी की चिंता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
बीजेपी और राष्ट्रवादी संगठनों के कुछ नेताओं ने टिकैत के बयान पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि जब पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन करता है, तो भारत को उस पर सभी स्तरों से दबाव बनाना चाहिए – जिसमें जल आपूर्ति भी एक तरीका है।
वहीं विपक्षी दलों और कुछ किसान संगठनों ने टिकैत के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि भारत को अपनी नैतिक श्रेष्ठता बनाए रखनी चाहिए, और ऐसे फैसले भावनाओं में बहकर नहीं, नीति और समझदारी से लिए जाने चाहिए।
किसानों की प्रतिक्रिया
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में कई किसानों ने टिकैत के बयान को संतुलित और मानवीय बताया। एक किसान नेता ने कहा,
“अगर पानी रोकना हल होता, तो अब तक आतंकवाद खत्म हो गया होता। हमें किसान के नज़रिये से सोचना चाहिए, न कि बदले की भावना से।”
हालांकि कुछ किसान इससे असहमत भी दिखे। उनका कहना है कि पाकिस्तान की हरकतों को देखते हुए भारत को सख्त कदम उठाने चाहिए, और इसमें पानी रोकना एक जरूरी रणनीति हो सकती है।
क्या यह नई सोच की शुरुआत है?
नरेश टिकैत का यह बयान भले ही विवादास्पद लगे, लेकिन यह एक गंभीर मुद्दे पर किसान दृष्टिकोण से सोचने का इशारा भी करता है। उन्होंने पानी जैसे जीवनदायिनी तत्व को हथियार न बनाने की बात कही, और यह सोच उन मूल्यों से जुड़ी है जो भारत की परंपरा का हिस्सा रहे हैं।
अब सवाल यह है कि क्या भारत सरकार इस मानवीय दृष्टिकोण पर विचार करेगी या राजनीतिक-सुरक्षा रणनीति के तहत कड़े निर्णय पर टिकेगी?
भविष्य की नीति क्या होगी, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि नरेश टिकैत के इस बयान ने एक संवेदनशील बहस को जन्म दे दिया है – जिसमें राष्ट्रहित, किसान हित और मानवता तीनों की कसौटी पर विचार होगा।
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