उपराष्ट्रपति JD Vance का बयान: ‘काश उषा ईसाई हो जातीं’
अमेरिकी राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है, जब उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपनी पत्नी उषा वेंस के हिंदू धर्म पर खुली टिप्पणी की। एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में वेंस ने कहा, “काश मेरी पत्नी उषा, जो हिंदू हैं, ईसाई धर्म अपना लें।” यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल होते ही हंगामा मच गया। वेंस, जो एक डिप्लीटेड ईसाई हैं, ने इसे अपनी ‘इच्छा’ बताया, लेकिन इससे हिंदू अमेरिकी समुदाय में गुस्सा भड़क उठा। उषा वेंस, जो भारतीय मूल की हिंदू हैं, येल लॉ ग्रेजुएट और वेंस की तीन बेटियों की मां हैं। यह बयान 2024 चुनाव के बाद आया, जब वेंस उपराष्ट्रपति बने, और अब यह बहुसांस्कृतिक अमेरिका में धार्मिक संवेदनशीलता पर बहस छेड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बयान न सिर्फ निजी है, बल्कि राजनीतिक संदेश भी देता है।
HAF का तीखा विरोध: धार्मिक असंवेदनशीलता का आरोप
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) ने वेंस के बयान को ‘धार्मिक असंवेदनशीलता’ का करार दिया। संगठन के डायरेक्टर समीर कलरा ने कहा, “हिंदू धर्म किसी पर थोपता नहीं, बल्कि सहिष्णुता और व्यक्तिगत आस्था का सम्मान करता है। ऐसी टिप्पणियां हिंदू समुदाय को कमतर ठहराती हैं।” HAF ने सवाल उठाया कि अगर उषा का धर्म बदलने का कोई प्लान नहीं, तो ऐसी इच्छा जताने की क्या जरूरत? फाउंडेशन ने इसे अमेरिकी राजनीति में हिंदुओं के प्रति पैटर्न बताया—जैसे 2023 में कुछ राजनेताओं के ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ वाले बयान। HAF ने वेंस से माफी और संवेदनशीलता ट्रेनिंग की मांग की। सोशल मीडिया पर #RespectHinduFaith ट्रेंड कर रहा है, जहां हजारों हिंदू अमेरिकन्स ने अपनी कहानियां शेयर कीं।
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JD Vance की सफाई: ‘कोई प्लान नहीं, सिर्फ इच्छा’
विवाद बढ़ते ही वेंस ने सफाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, “मेरी पत्नी उषा का धर्म बदलने का कोई इरादा नहीं है। यह मेरी निजी इच्छा थी, जो प्यार से निकली। हम दोनों एक-दूसरे के विश्वासों का सम्मान करते हैं।” वेंस ने जोड़ा कि उनका परिवार इंटरफेथ है, और वे बच्चों को दोनों धर्मों की शिक्षा देंगे। लेकिन HAF ने इसे अपर्याप्त बताया—कहा कि निजी इच्छा भी सार्वजनिक पद पर असर डालती है। डेमोक्रेट्स ने इसे ‘ट्रंप गठबंधन की धार्मिक राजनीति’ का हिस्सा कहा, जबकि रिपब्लिकन्स ने वेंस का बचाव किया। उषा वेंस ने चुप्पी साधी, लेकिन उनके करियर—क्लर्कशिप से लेकर व्हाइट हाउस तक—पर फोकस शिफ्ट हो गया।
अमेरिकी राजनीति में हिंदुओं के प्रति पैटर्न: पुरानी कहानी
HAF ने याद दिलाया कि यह पहली घटना नहीं। 2019 में तुलसी गबार्ड के हिंदू होने पर विवाद, 2024 में विवेक रामास्वामी पर ‘हिंदू राष्ट्र’ के आरोप—ये सिलसिला लंबा है। अमेरिका में 2.5 मिलियन हिंदू हैं, जो वोट बैंक बन चुके हैं। लेकिन ऐसे बयान स्टीरियोटाइप्स को बढ़ावा देते हैं—हिंदुओं को ‘विदेशी’ या ‘अलग’ दिखाते हैं। ACLU जैसे संगठनों ने कहा कि यह फर्स्ट अमेंडमेंट (धार्मिक स्वतंत्रता) पर हमला है। विशेषज्ञ मानते हैं कि 2028 चुनावों में हिंदू वोट निर्णायक होंगे, इसलिए वेंस का बयान बैकफायर कर सकता है।
आगे की चुनौतियां: बहुसांस्कृतिक अमेरिका में न्याय?
सवाल यह है—क्या अमेरिका अपने बहुसांस्कृतिक समाज में हिंदू अधिकारों को समझेगा? उषा वेंस को अपना हिंदू धर्म मानने का उतना ही हक है, जितना किसी को। यह विवाद पुरानी धार्मिक राजनीति की कड़ी लगता है, लेकिन HAF जैसे संगठन बदलाव ला रहे हैं। वेंस को अब संवेदनशीलता दिखानी होगी, वरना हिंदू समुदाय दूर हो सकता है। न्याय और सम्मान का इंतजार है—क्योंकि अमेरिका ‘वन नेशन’ है, न कि ‘वन फेथ’।

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