August 28, 2025

महाराष्ट्र में हिंदी-मराठी भाषा विवाद: संजय राउत और निशिकांत दुबे के बीच जुबानी जंग

भाषा विवाद ने फिर पकड़ा जोर

महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी भाषा को लेकर विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के बीच बयानों की जंग ने इस मुद्दे को और हवा दी है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि मुंबई और महाराष्ट्र के निर्माण में उत्तर प्रदेश, बिहार और हिंदी भाषी लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस बयान को शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने मराठी अस्मिता का अपमान बताते हुए तीखा जवाब दिया।

निशिकांत दुबे का बयान

बीजेपी के फायरब्रांड सांसद निशिकांत दुबे ने अपने इंटरव्यू में कहा कि मुंबई और महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था में हिंदी भाषी लोगों का योगदान बराबर का है। उन्होंने सवाल उठाया कि इसके बावजूद हिंदी भाषी लोगों को निशाना क्यों बनाया जाता है? दुबे ने यह भी कहा कि अंग्रेजी बोलने पर किसी को आपत्ति नहीं होती, लेकिन हिंदी बोलने पर विरोध क्यों? उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत में अंग्रेजी नहीं बोली जाती थी। दुबे का यह बयान बीएमसी चुनावों के संदर्भ में भी देखा जा रहा है, जहां भाषा का मुद्दा राजनीतिक रंग ले चुका है।

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संजय राउत का पलटवार

संजय राउत ने निशिकांत दुबे के बयान को मराठी अस्मिता पर हमला करार दिया। उन्होंने मुंबई हमले के 106 शहीदों का जिक्र करते हुए कहा कि दुबे, चौबे या मिश्रा जैसे लोग इन शहीदों में शामिल नहीं हैं। राउत ने अपने बयान में मराठी गौरव को रेखांकित करते हुए हिंदी के अनिवार्य उपयोग का विरोध किया। शिवसेना यूबीटी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) लंबे समय से मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की वकालत करते रहे हैं।

हिंदी-मराठी तनाव का इतिहास

महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी भाषा को लेकर तनाव नया नहीं है। मनसे और शिवसेना यूबीटी ने कई बार हिंदी के अनिवार्य उपयोग का विरोध किया है। कुछ घटनाएं, जैसे मीरा रोड पर एक मारवाड़ी व्यापारी के साथ मारपीट, ने इस विवाद को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया। मनसे नेता राज ठाकरे ने मराठी भाषा के अपमान को बर्दाश्त न करने की बात कही है, जिसे बीजेपी ने बीएमसी चुनावों से जोड़कर राजनीतिक रणनीति करार दिया है।

आगे की राह

यह विवाद न केवल भाषाई अस्मिता का सवाल है, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों को भी उजागर करता है। महाराष्ट्र में बीएमसी चुनावों के नजदीक आते ही इस तरह के बयान और जवाबी हमले तेज होने की संभावना है। क्या यह विवाद शांत होगा या और गहराएगा, यह समय बताएगा।

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