रेस के घोड़े और बारात के घोड़े को अलग करना होगा”: राहुल गांधी के बयान का क्या है मतलब?

कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का एक बयान इन दिनों राजनीतिक गलियारों में जमकर चर्चा में है। मध्यप्रदेश के भोपाल में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा अब समय आ गया है कि रेस के घोड़े और बारात के घोड़े को अलग करना होगा।इस बयान ने न सिर्फ पार्टी के भीतर हलचल मचा दी है, बल्कि विरोधी भी इस पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

 आखिर क्या है रेसऔर बारातके घोड़ों का मतलब?

राहुल गांधी का यह बयान प्रतीकात्मक  था। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को तीन श्रेणियों में बांटा रेस का घोड़ा – यानी वो कार्यकर्ता जो तेजी, जुनून और नतीजे के साथ लगातार मेहनत कर रहे हैं।बारात का घोड़ा  यानी वो लोग जो सिर्फ दिखावे और मौकों पर ही सक्रिय नजर आते हैं। लंगड़ा घोड़ा  यानी ऐसे कार्यकर्ता जो ना काम कर रहे हैं और ना ही दूसरों को करने दे रहे हैं।राहुल गांधी ने साफ किया कि अब पार्टी को आगे ले जाने के लिए इन तीनों में फर्क करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जो कार्यकर्ता पार्टी को तंग करेंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

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 राहुल गांधी का सीधा संदेश

राहुल गांधी का यह बयान पार्टी में परफॉर्मेंस और जवाबदेही की मांग को दर्शाता है। उन्होंने कहा  मध्यप्रदेश में टैलेंट की कमी नहीं है, बल्कि असली आवाज दबा दी जाती है। कई कार्यकर्ता ऐसे हैं जो बीजेपी को अकेले हरा सकते हैं लेकिन उनकी बात संगठन में सुनी नहीं जाती।

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 पार्टी में मचा हलचल

इस बयान के बाद पार्टी के भीतर सक्रिय और निष्क्रिय नेताओं के बीच खींचतान बढ़ सकती है। कई लोगों का मानना है कि राहुल गांधी संगठन को जमीनी कार्यकर्ताओं के हाथों में सौंपना चाहते हैं।

 क्या है इसका राजनीतिक असर?

इस बयान को राहुल गांधी के संगठनात्मक बदलाव की ओर एक और कदम माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव 2029 से पहले यह बयान कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को फिर से एक्टिव करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

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